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________________ [8.4] भाभी के उच्च प्राकृत गुण 287 दादाश्री : मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता था, रुचता नहीं था। मुझे तो भगवान के अलावा और कहीं भी रुचि नहीं थी! ____नीरू माँ : लेकिन बड़े भाई डाँटते थे उन्हें, 'काम नहीं करता है' ऐसा करके। दादाश्री : हाँ, डाँटते थे। नीरू माँ : कहती हैं, 'फिर उनके भाई कुछ कहते तब मैं बहला देती कि सब्जी लेने गए थे। जैसे-तैसे करके मैं बहला देती थी'। दादाश्री : बड़े भाई यों तो राजसी इंसान थे लेकिन स्वभाव ज़रा तेज़ था। दादा के ब्रह्मचर्य के बारे में... नीरू माँ : दादा के ब्रह्मचर्य के बारे में बताइए न। दिवाली बा : उनके ब्रह्मचर्य की बराबरी तो कोई भी नहीं कर सकता। ओहोहो... उनके मन में बिल्कुल भी गलत विचार नहीं था। ऐसा था उनका ब्रह्मचर्य! नीरू माँ : शुरू से ही, बचपन से ही ऐसा था? दिवाली बा : बचपन से ही। उन दिनों आड़, पर्दै बहुत थे। दो घरों के बीच में हमारी तरफ एक दरवाज़ा था, बड़ी खिड़की जैसा। हमारे दो घर थे, मेरे सगे चाचा ससुर का और हमारा। मंगल भाई का और मूलजी भाई का। वे जो जेठ थे तो उनकी शादी गजेरा में हुई थी, मेरे ही कुटुंब में। लेकिन उनका स्वभाव बहुत ही जेलसी वाला था, ईर्ष्या वाला था। मेरी बा ने मुझे बहुत दिया था। उनकी सास सौतेली थी, यानी कि उनकी पत्नी की सौतेली माँ, तो उन्होंने बहुत ज़्यादा कपड़े वगैरह नहीं दिए थे इसलिए उन्हें इर्ष्या होती थीं। बा भैंस रखते थे तो एक बार बा तरसाली गई थीं। तब चरवाहे की स्त्रियाँ छाछ लेने आती थीं। उन दिनों हर घर में भैंसें थीं। सभी लोग
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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