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________________ [8.4] भाभी के उच्च प्राकृत गुण 283 प्रश्नकर्ता : लेकिन उस समय बहुत ही लागणी (भावकुता वाला प्रेम) से आपकी तबीयत पूछ रही थीं। दादाश्री : लागणी तो है लेकिन ज्यादा तो वह है (बैर वाला)। प्रश्नकर्ता : लेकिन जहाँ लागणी होती है, वहाँ पर वैसा रहता ही है। दादाश्री : राग और द्वेष दोनों ही रहते हैं न! । एक बार तो जब जयंती मनाई तब कहा, 'मुझे दूसरी मनानी है'। मैंने कहा, 'आप यही कहती हैं न, कि दादा आप बहुत जीएँ'। प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : तो अच्छा हुआ कि आशीर्वाद मिला है, अब बढ़ेगी, बढ़ेगी अब! दिवाली बा के आशीर्वाद तो फलेंगे न! वे बड़ी हैं, पूज्य हैं। व्यवहार में तो पूज्य ही हैं न! दिवाली बा करती थीं दादा की पुरानी बातें प्रश्नकर्ता : बा, दादा की पुरानी बातें बताइए न। दिवाली बा : मैं जब भादरण से अटलादरा जाती थी, तो वहाँ बीच में उतरकर हीरा बा से मिलने जाती थी। हीरा बा के जाने के बाद कम कर दिया मैंने। लेकिन अंबालाल का मेरे प्रति बहुत भाव था। नीरू माँ : बहुत भाव। दिवाली बा : वे (मणि भाई) धाम में गए न, तो मैं बहुत रोती थी। मेरे पैरों पर हाथ रखकर उन्होंने कहा, 'मैं आपको बा की तरह रखंगा'। तो उसी प्रकार से रखा है। मुझे डाँटते भी थे। देवर हैं न! लेकिन मेरा प्रेम भी कम नहीं होता था। भाव से (हृदय से) कम नहीं होता था। भाभी थीं न, इसलिए परेशान करते थे प्रश्नकर्ता : भाभी थीं न इसलिए डाँटती थीं, परेशान भी करती थीं न?
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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