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________________ 280 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) हमारा धन्य भाग्य कहा जाएगा न! मुझे आनंद होगा न! उनकी कुछ बातें लोगों को समझ में आएँ तो अच्छा है न! अच्छी स्त्री हैं, बहुत सत्संगी हैं! पूरी जिंदगी भक्ति की, 'महाराज, महाराज' कहती हैं। उस धर्म ने ही उनका रक्षण किया हमारी भाभी ने स्वामीनारायण धर्म को अच्छे से पकड़कर रखा है। विधवा स्त्री के लिए यह मार्ग सब से अच्छा है। क्योंकि तीस साल में विधवा हो गई थी, लेकिन देखो न चरित्र बिल्कुल पवित्र। तभी तो मैं कहता हूँ न कि यह धर्म अच्छा है। धर्म ने ही उनकी रक्षा की। प्रश्नकर्ता : वास्तव में धर्म ने ही उनकी रक्षा की, दादा। दादाश्री : हाँ। और उनकी भावना थी न! बहुत मज़बूत। अब तीस साल की उम्र थी, इतने साल कैसे बिताए? धर्म में घुस गईं न, फिर इसके बाद, 'किसी भी स्त्री या पुरुष को नहीं छूना है', ऐसे सब नियम ले लिए थे तो वह बहुत अच्छा हुआ। भाभी ने कहा, 'मुझे भी ज्ञान दो' एक बार वहाँ (बड़ौदा में) दर्शन करने आई थीं, पच्चीस-तीस स्त्रियों को लेकर। वे सब उनकी असिस्टन्ट थीं, उनकी फॉलोअर्स थीं सभी। नीरू बहन बैठी थीं और भाभी उन सब को लेकर आईं। तब फिर उनके फॉलोअर्स ने क्या कहा? 'जैसे आप इनके लिए हो न, वैसे ही ये हमारे लिए हैं। मैंने कहा, 'बहुत अच्छा है भाई'। एक बार दसेक साल पहले हमारी भाभी आई थीं। मुझसे कहा कि 'मुझे आत्मज्ञान दो'। फिर मैंने कहा, 'नहीं, आपको ज्ञान नहीं दे सकता'। तब कहा, 'आप इन सब को ज्ञान देते हो तो मुझे क्यों नहीं देते?' तब मुझे ऐसा लगा कि यदि इन्हें ज्ञान दे दूँगा तो फिर कितने ही लोगों को बेचारों को कोई समझाने वाला नहीं मिलेगा। वे जब खुद पढ़ती थीं तो उनके पास पचास स्त्रियाँ बैठी रहती थीं। अब वे पचास सत्संगियों को सत्संग करवाती हैं। वह खंभा टूट जाएगा तो पचास लोग कहाँ बैठेंगे
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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