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________________ [8.1] भाभी के साथ कर्मों का हिसाब 233 दिए तो मैं अहमदाबाद आ सका' ऐसा कहता था। वह मुझे बहुत मानता था। किसी के यहाँ जाने की इच्छा नहीं थी, इसलिए एड्रेस ही नहीं रखता था वह मुझे चिट्ठियाँ लिखता रहता था, 'यहाँ आइए, यहाँ आइए, यहाँ आइए'। तब मैंने सोचा, 'चलो न वहाँ जाते हैं'। लेकिन मैं शुरू से ही किसी का एड्रेस-वेड्रेस नहीं लेता था। आज भी नहीं लेता हूँ क्योंकि मुझे जाने की इच्छा ही नहीं है किसी के यहाँ। इसलिए किसी का कोई एड्रेस नहीं रखता था, चाहे मित्र हों या कोई और। वे मेरा एड्रेस लिख लेते थे लेकिन मैं किसी का नोट ही नहीं करता था न! अभी तक नोट नहीं किया है किसी का भी। वहाँ जाकर किसी से पूछना पड़े कि वे भाई कहाँ रहते हैं, तो फिर क्या होगा? फिर मन में इतना गुमान था कि, 'मुझे तेरे एड्रेस का क्या करना है? मुझे जिस समय ज़रूरत होगी तब मिल जाएगा। मुझे भला वहाँ कहाँ जाना है? और अगर जाना होगा तो वह सामने से लेने आएगा'। इसलिए उस गुमान में किसी का भी पता (एड्रेस) नहीं लिखा था। जिंदगी में किसी का भी एड्रेस मैंने नहीं लिखा। तो उस मित्र का भी एड्रेस नहीं लिया था। जब जाएँगे तब मिल जाएगा। अब उस दिन मैं मुश्किल में पड़ गया। यह तो फँसाव हो गया फिर भी मन में ऐसा तय किया कि दिन की गाड़ी है न, तो कोई हर्ज नहीं है। दोपहर की ग्यारह बजे की गाड़ी है, यह तो चार घंटे में पहुँच जाएगी इसलिए फिर दिन के उजाले में ढूँढ लेंगे, पहुँच जाएँगे 'ढाल की पोल' (अहमदाबाद का एक मुहल्ला)। वहाँ से ग्यारह बजे की गाड़ी से निकला ताकि दिन में पहुँच जाएँ, तो घूम-फिरकर उसे ढूँढ निकालेंगे। यदि पास में पैसे होते तो घोड़ा गाड़ी वाले से भी कह सकते थे कि 'भाई उस मुहल्ले में ले जा'। सिर्फ मुहल्ले का नाम ही जानता था। टिकट का चार्ज बढ़ गया इसलिए फँस गया फिर मैं एक रुपया लेकर अहमदाबाद की टिकट लेने गया। उन
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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