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________________ 226 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) भाभी बहुत होशियार थीं। वे हम दोनों भाईयों से हिसाब माँगती थीं कि 'अभी क्या कमाई चल रही है वगैरह, वगैरह'। हमारे बड़े भाई उन्हें सब बता देते थे, दूसरी पत्नी थीं न इसलिए। मेरे भाई भाभी से क्या कहते थे? आज काम किया उसमें लगभग छ: सौ रुपए मिले होंगे। प्रश्नकर्ता : छ: सौ रुपए! दादाश्री : हाँ। ऐसा कहते थे। अब उस समय मुझे पता नहीं था कि यह सब कहने का परिणाम क्या आएगा! उसके बाद फिर जब काम ठीक से नहीं चल रहा था। तब उन्होंने कहा, 'पहले तो रोज़-रोज़ छ: सौ लाते थे, अब क्यों ठंडे पड़ गए?' मैंने कहा, 'अरे भाई! ये भला हमारे में कहाँ हाथ डलवाया?' ये भाई भी खूब हैं न! व्यापार तो कभी चले या कभी न भी चले! मैं हिसाब नहीं दूंगा, मेरी स्वतंत्रता पर रोक नहीं चलेगी उसके बाद वे मुझसे भी पूछने लगीं, 'हिसाब बताओ'। मैंने कहा, 'ऐसा कहाँ से लाए अपने घर में? ऐसा हाल कब से हुआ?' हमारा कोई ऊपरी नहीं है, और फिर वापस ये ऊपरी बन बैठी! बड़े भाई ऊपरीपना नहीं करते थे। ये बड़े भाई की ढील की वजह से हैं और क्योंकि भोलेभाले इंसान थे, तो दूसरी पत्नी चढ़ बैठती थीं हमेशा। ये चढ़ बैठी थीं। 'मेरी स्वतंत्रता पर रोक नहीं चलेगी'। मैंने कहा, 'मैं यहाँ पर सर्वन्ट नहीं हूँ, मैं तो मालिक हूँ। मणि भाई से हिसाब लेना', ऐसा कहा। वे मुझसे ऐसा पूछने लगीं इसलिए मैंने कह दिया। अहंकार ज़रा भारी था न मेरा। मैंने कहा, 'मैं हिसाब नहीं दूंगा। बिज़नेस में आपको बिल्कुल भी हाथ नहीं डालना है। चुप! आप मेरी साहब बन बैठी हो? यहाँ मेरे पास नहीं चलेगा'। भाभी की वजह से घर छोड़कर भाग गए प्रश्नकर्ता : दादा, भाभी के साथ में ऐसी कोई घटना हुई थी कि
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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