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________________ 224 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) भाई को वश में करने के लिए करती थीं तरकीब प्रश्नकर्ता : वह बात बताइए न दादा, आपकी भाभी ने कुछ छुपा दिया था। दादाश्री : हाँ, छुपा दिया था। प्रश्नकर्ता : क्या? ज़रा वह बात बताइए न, दादा। दादाश्री : हमारे पास पैसों की बहुत कमी थी। उन दिनों भाई पर पच्चीस हज़ार का उधार हो गया था, कॉन्ट्रैक्ट के बिज़नेस में। पैसे नहीं थे तो (भाभी को) उनसे पैसे माँगने पड़ते थे तो उन्होंने यह तरकीब की। वे कोयले की बोरियाँ छुपा देती थीं, चावल छुपा देती थीं, कुछ भी छुपा देती थीं। फिर अगर हमें लाने में देर हो जाती न, और हम ऐसा पूछते कि 'यह किसमें से बनाया?' तब बताती थीं, 'पड़ोस में से ले आईं थोड़ा। तो इस तरह इधर-उधर हमें दवाब में रखती थीं। यह गप्प नहीं लगा रहा हूँ। नज़रों से देखी हुई बात बता रहा हूँ। दो मन चावल ऊपर रख आती थीं। उसके बाद कहती थीं कि 'चावल ले आओ, चावल नहीं हैं'। वे थाह लेती थीं कि भाई को क्या होता है? तब भाई कहते, 'तेरे पास पाँच-पचास पड़े हैं? सौ एक?' अब सौ रुपए में कितने आते, पाँच रुपए भाव वाले? कितने दिन चलते? इसी तरह से एक बार क्या किया? कोयले की बोरी उन्होंने नौकरानी से ऊपर चढवा दी और हमें कहने लगीं कि 'यह देखो कोयले खत्म हो गए'। उन दिनों तो डेढ़ रुपए की एक बोरी आती थी लेकिन दो-चार बोरियाँ एक साथ लाते तो लाने का किराया कम लगता न! तब मैंने कहा, 'आज तो पैसे नहीं हैं और आपकी तो सभी बोरियाँ खत्म हो गई हैं'। तो हमारे भाई ने कहा, 'अरे भाई जा न, उधार लेकर आ'। तब उन्होंने कहा, 'मैं आपको दूंगी लेकिन अगर आप मुझे वापस दे देंगे, तो'। और वे तो घर की सेठानी, तो हमारे बड़े भाई ने कहा, 'अरे, दे
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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