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________________ [8.1] भाभी के साथ कर्मों का हिसाब 219 मुझे चिढ़ बहुत थी ऐसी जाति पर। यानी कि मेरे मन में खटका रहा करता था, चिढ़ मचती थी कि 'ये कह क्या रही हैं ? ये स्त्री उन्हें दबा रही हैं। वे बाघ जैसे, सिंह जैसे और ये उन्हें दबा रही हैं,' तो मैं बहुत चिढ़ता था लेकिन बड़े भाई ने तो मान ही लिया कि यह बात करेक्ट है। त्रिकाल सत्य कह रही हैं ये। क्या मान लिया? 'अगर आप नहीं होंगे तो मैं आपके बिना जी नहीं पाऊँगी'। भाई खुश हो जाते थे कि 'कितनी अच्छी स्त्री मिली है! कैसी महारानी जैसी मिली है!' उनके मन में ऐसा था कि 'ओहोहो! ऐसी स्त्री फिर से नहीं मिलेगी'। धीरे-धीरे, धीरे-धीरे उन्होंने भाई पर चारों तरफ से जाल डालकर उन्हें डरा दिया। यानी कि पिंजरे में डाले हुए बाघ जैसे हो गए थे भाई। उन्होंने मेरे ब्रदर से जो स्त्री चरित्र खेला, वह मैंने पकड़ लिया। मैं तो समझ गया, 'ओहोहो! स्त्री इतनी शातिर!' ___वह स्त्री रोज़ इस तरह पानी पिलाती रहती थी, जैसे कि बाघिन शिकार करने जाती है न, उस तरह से। 'आपके बिना मैं जी नहीं पाऊँगी, मैं नहीं रह पाऊँगी'। प्रश्नकर्ता : उनसे ऐसा कहती थीं! सिंह जैसे भाई को कपट से बना दिया बकरी दादाश्री : हमारे घर में आकर उन्होंने इतना ज्यादा बदलाव ला दिया, मेरे बड़े भाई में! उन्होंने कैसे बकरी बना दिया होगा, वह तो आप जानते हो न? कपट करके। कपट करके भाई को बकरी बना दिया। प्रश्नकर्ता : और क्या कपट करती थीं भाई से? दादाश्री : हमारी भाभी तो पूरे दिन खाती रहती थीं और फिर जब हमारे बड़े भाई आते थे न, तब कहती थीं, "अरे! मैं कुछ खा ही नहीं पाती हूँ!' उन्होंने ही मुझे स्त्री जाति की पूरी विद्या सिखाई, स्त्री चरित्र। होता अलग है और कहती कुछ अलग है। प्रश्नकर्ता : ठीक है, दादा। दादाश्री : फिर जब मेरे भाई की मृत्यु हो गई तब मैंने भाभी से
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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