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________________ है, ज्ञान पढ़ना पड़ता है। बड़े भाई भी उन्हें टोकते थे कि 'तू पढ़ाई नहीं करता है, पढ़ने में ध्यान नहीं रखता'। लेकिन उन्हें तो संपूर्ण रूप से स्वतंत्र होना था। अंत में 1958 में संपूर्ण रूप से स्वतंत्र हुए। वे कहते थे कि 'पूरे वर्ल्ड का कल्याण करने का निमित्त लेकर आया हूँ और जगत् का कल्याण अवश्य होकर ही रहेगा'। स्कूल में लघुत्तम सिखाया जाता था कि इन सब संख्याओं में सब से छोटी अविभाज्य संख्या जो कि हर एक संख्या में समाई हुई हो उसे ढूँढ निकालो। दादाजी कहते थे कि, "उस ज़माने में मैं लोगों को, इंसानों को 'संख्या' कहता था। यह संख्या अच्छी है, यह संख्या अच्छी नहीं है।" तो चौदह साल की उम्र में भी उन्हें ऐसा विचार आया कि ऐसी छोटे से छोटी चीज़ भगवान ही है जो कि हर एक में अविभाज्य रूप से रही हुई है। तभी से उन्हें ऐसा समझ में आ गया था कि भगवान लघुत्तम हैं और लघुत्तम के फलस्वरूप भगवान पद मिलता है। बचपन से ही उनकी थिंकिंग ऐसी थी कि हर एक बात के परिणाम के बारे में सोच लेते थे। किसी चीज़ के बारे में पढ़ते नहीं थे, लेकिन स्टडी करते थे। उसके बारे में सभी कुछ सोच लेते थे और उसके अंतिम परिणाम समझ में आ जाते थे। लघुत्तम की बात मिली तभी से वे खुद लघुत्तम की तरफ झुकते गए और अंत में लघुत्तम पद प्राप्त करके ही रहे। _[2.2] मैट्रिक फेल पंद्रह साल की उम्र में उन्होंने अपने फादर और ब्रदर को बात करते हुए सुना कि, 'यह अंबालाल अच्छी तरह से मैट्रिक में पास हो जाए तो उसे पढ़ाई के लिए विलायत भेजेंगे और वहाँ से वह सूबेदार (कलेक्टर) बनकर आएगा'। बड़े भाई बड़ौदा में कॉन्ट्रैक्ट का काम करते थे। पैसों की सहूलियत थी तो उनकी इच्छा थी कि थोड़ा खर्च करके उन्हें विलायत पढ़ने भेजें। अंबालाल ने सोचा कि, 'मुझे बड़ौदा स्टेट का सूबेदार बनाएँ, तब भी क्या? गायकवाड़ सरकार की नौकरी 21
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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