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________________ [7] बड़े भाई 205 आपको देखते ही फौजदार-वौजदार, सूबेदार-वूबेदार सब इधर-उधर हो जाते हैं, वे इस तरह से कमिशन खाना सीख गए?' तब मैंने बड़े भाई से कहा कि 'यह शेर तिनके खाने लगा है। नहीं खाना चाहिए। खाना तो क्या, छूना तक नहीं चाहिए। कौन हैं आप? किस जाति के हैं आप? आप किस तरह के इंसान हैं और तिनके खा रहे हैं?' ___मैंने कहा, 'शेर घास नहीं खाता। किसी भी जन्म में नहीं खाई है, और पहली बार ये घास खा रहे हैं। भाभी बैठी थीं और मैंने कहा, 'अनफिट हैं ये। यह मुझे स्वीकार नहीं हो रहा है। घास खाई आपने?' तब उन्होंने कहा, 'संयोग मिले तो करना पड़ता है। मैंने कहा, 'नहीं! शेर किसी भी संयोग में घास नहीं खाता। उसी को शेर कहते हैं!' । मणि भाई को तो मिट्टी में मिला दिया एक दिन। 'अनफिट' कहा तब फिर उनका पारा तो उतर ही जाता न! मूलतः तो वे शेर जैसे इंसान, जब उनकी भूल दिखाई, तो पहले तो हमारी भाभी ने रक्षण किया। कहने लगीं, 'अगर ऐसी अड़चन हो और उससे सौ-डेढ़ सौ ले लिए तो उसमें क्या हुआ? उसके लिए चक्कर लगाया, उसका काम किया है और उसका फायदा करवा दिया है'। मैंने कहा, 'नहीं! लेकिन जिसे कमिशन कहते हैं। वह हमारे काम का नहीं है। हम शेर के बच्चे हैं। शेर ने किसी भी जन्म में घास नहीं खाई। वे ऐसे नहीं थे कि कमिशन लें लेकिन भाभी के दबाव की वजह से हुई भूल वास्तव में ऐसा कभी भी नहीं हुआ था। हमारी लाइफ में भी ऐसा नहीं हुआ था। उस दिन मणि भाई ने ऐसा किया लेकिन वह तो हमारी भाभी का बहुत दबाव था न, इसलिए ऐसा किया था। यों कभी भी कमिशन नहीं खाते थे। वे ऐसे नहीं थे कि कमिशन खाएँ। तिनका भी न छुएँ। लाख रुपए हों तब भी न छुएँ। खुद पर गरीबी आ जाए फिर भी न छुएँ। इसलिए फिर मैंने मणि भाई से ऐसा कह दिया कि 'आपको
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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