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________________ 200 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) मेरे बारे में तो लोग पीछे से कहते भी थे, 'दो भाईयों में से यह बेचारा बहुत अच्छा है। छोटा वाला अच्छा है'। हाँ, वह 'शेर' और यह 'बेचारा' बन गया। लोग भी ऐसा कहते थे कि हम दोनों में उत्तर-दक्षिण का फर्क है। प्रश्नकर्ता : तो एक-दूसरे के कम्पैरिज़न में आपको क्या होता था तब? दादाश्री : मुझे अच्छा नहीं लगता था 'बेचारा' शब्द। प्रश्नकर्ता : हं, दादा को अच्छा नहीं लगता था। आप जैसे सिंह को कैसे अच्छा लगता? दादाश्री : मेरे बड़े भाई ही कहते थे न, 'अरे, वह कह रहा था कि आपका भाई बेचारा बहुत अच्छा है। यह तूने क्या घुसा दिया है? प्रश्नकर्ता : भाई साहब ने ऐसा कहा? दादाश्री : हाँ। प्रश्नकर्ता : बड़े भाई को भी अच्छा नहीं लगा 'बेचारा?' दादाश्री : नहीं। मार ही देते वहीं पर, अगर सुन लेते तो! 'बेचारा' क्यों कह रहा है ? बड़े भाई तो शब्दों को तौलने वालों में से थे। अतः हमारे बड़े भाई क्या कहते थे? 'अगर बेचारा कहें तो यहाँ पर मत आना तू'। 'बेचारा' शब्द मेरी डिक्शनरी में नहीं होना चाहिए, ऐसा कहते थे। इतना सब तूफान, ऐसी सारी झंझट! मुझे हिंसा का भय, बड़े भाई को बिल्कुल भी नहीं प्रश्नकर्ता : मणि भाई तो बहुत ही दबंग थे। दादाश्री : बहुत विषम। फौजदार को मारते थे, नायब सूबेदार को मारते थे, सूबेदार को मारते थे, सभी को मारते थे। वहीं पर उड़ा दें ऐसे इंसान थे वे तो। उसकी बंदूक लेकर उसी को मार देते। उन्हें किसी भी तरह का भय-वय नहीं था। मुझे तो हिंसा करने में बहुत डर लगता था।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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