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________________ 198 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) चाहिए, लेकिन तुलसी भाई को भी इतना सब सुना दिया इसलिए तुलसी भाई बहुत घबराते थे। ___मेरी बैर बाँधने की तैयारी नहीं थी, बड़े भाई तैयार मणि भाई ऐसे इंसान थे कि जब बाहर निकलते थे, तो पूरे मुहल्ले में कोई व्यक्ति ऐसा नहीं था जो उनके सामने दो अक्षर भी कह सके, फिर चाहे वह सूबेदार हो या फौजदार हो। प्रश्नकर्ता : उनके सामने कोई भी नहीं बोला। दादाश्री : उनके सामने एक अक्षर भी नहीं। पीछे से बहुत कुछ कहते थे, लेकिन उनके सामने चुप, बिल्कुल चुप। जब वे बोलते थे तब उनका नाम भी नहीं ले सकते थे। किसी ने नाम लिया तो खत्म। फिर यह नहीं देखते थे कि इससे क्या बैर बँधेगा। बैर भोगने के लिए तैयार, वे खुद ही तैयार। मैं पहले से ही बैर बाँधने को तैयार नहीं था। बैर की वजह से बहुत मार खाई थी मैंने। मुझे सारे अनुभव हैं, याद हैं सभी पूर्व जन्म के। बैर से क्या फायदा हुआ, वह मुझे याद है! मैं तो बैर से परेशान हो गया था। पीछे से तो सब कहते हैं मेरे सामने कहें तो मानूं एक दिन मैंने उनसे कहा, 'इस घड़ी वाले की दुकान पर आपकी बातें हो रही हैं। पच्चीस हज़ार रुपए का उधार हो गया है। लोग पीछे से आपका नाम लेते हैं कि, 'ये कर्जदार हो गए हैं'। आपके पीछे सब लोग उल्टा बोलते हैं। तब कहा, 'सूर्यनारायण पर उनके सामने जाकर धूल उड़ाएँ, तो ठीक है! पीछे से तो हर कोई उड़ाता है। वह तो उसकी आँखों में ही गिरेगी। मेरे सामने किसी ने कुछ कहा? मुँह पर कोई कहने वाला मिला? मेरे मुँह पर कहे तो ठीक है'। उनके सामने कभी कोई फौजदार भी नहीं बोला। उस घड़ी वाले से ऐसा कहना कि, 'तू उधार लेकर देख, पच्चीस हज़ार ले आ। कोई उधार देता है तुझे?' पूछकर आना। 'मुझे जो उधार दिया वह मेरे बल बूते पर दिया है न! क्या यों ही उधार दे देते हैं ?'
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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