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________________ [7] बड़े भाई 191 साल का, तो उसे डॉक्टर के यहाँ ले जाना था। तब मामी ने उनसे कहा कि, 'भाँजे जी, चलो हमारे साथ। इस बच्चे को दिखाने ले जाना है। तब भाई ने कहा, 'चलिए, मैं आता हूँ'। तो भाई भी मामी के साथ एक डॉक्टर के यहाँ गए थे। फिर होस्पिटल से जब वापस लौट रहे थे, तब रास्ते में एक तालाब आया। उस तालाब को देखा तो बड़े भाई ने मामी से कहा, 'इस लोथड़े को फेंक दो इसमें'। अब ऐसे इंसान का क्या करें? उन्हें बच्चों की कुछ भी नहीं पड़ी थी। प्रश्नकर्ता : यानी कि योगी ही थे न, एकदम योगी। दादाश्री : वे तो क्या कहते थे? 'बच्चे को धाड़ में देना है?' फिर बोलो, यदि बुद्धि के आशय में ही नहीं हो तो फिर होंगे ही नहीं न! बच्चे ही नहीं होंगे। यदि बच्चे की इच्छा की हो तो बच्चे होते हैं, अंदर आशय में हो तभी। सब आपकी इच्छा के अनुसार ही होता है, बुद्धि के आशय के अनुसार। लेकिन 'धाड़ में देना है' ऐसा कहते थे न, तो जब मैं भी छोटा था तब ऐसा कहता था, 'धाड़ में देना है ?' लेकिन फिर समझ में आ गया कि ऐसा नहीं कहना चाहिए। लेकिन फिर बेटा नहीं माँगा। अरे! क्या इतना झंझट कम है कि फिर यह झंझट बढ़ाऊँ? फिर बाप बनता है, और फिर लोथड़े को ऐसे डालकर चलना पड़ता है। बाप बनने गए ! अर्थात् पूर्व जन्म के ऐसे वसूली वाले ऋणानुबंध नहीं थे न ! तो इतना ज़रा सा ऋणानुबंध हो तो वह पूरा करने के लिए आते हैं। सिर्फ पैसों का ही नहीं कषायों का भी होता है, यहाँ का सब होता है। आकर बाप को मार दे, तब जाकर उसका ऋण पूरा होता है। तब हिसाब चुकता होता है। ऐसे हिसाब होते हैं। राजसी और दयालु, इसलिए लोगों की मदद करते थे प्रश्नकर्ता : दादा, कहते हैं न कि क्रोधी इंसान का दिल बहुत साफ होता है, तो बड़े भाई का दिल कैसा था? दादाश्री : हाँ, हमारे मणि भाई का मन बहुत बड़ा था। राजसी
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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