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________________ [7] बड़े भाई 189 रास्ते पर, खुले सिर खाना खाने नहीं बैठे किसी भी जगह पर। बारात में जाते तो वहाँ भी उन्हें किसी के घर में ही बैठाना पड़ता था। कभी भी लाइन में खाना खाने नहीं बैठते थे। ऐसा रौब कहाँ से? कौन से देश से आए थे, वह भी पता नहीं चलता था! हालांकि उनके ये सारे नियम मुझे अच्छे नहीं लगते थे लेकिन मुझे उनके साथ बैठना पड़ता था न! अपना भी रौब पड़ जाता था न! हमें बैठाते थे तो उनका भी रौब पड़ता था और उनके साथ मुफ्त में मेरा भी रौब पड़ जाता था। अब, आमदनी कितनी थी? ज़रा भी आमदनी नहीं थी। उनकी जायदाद में क्या था? कुछ भी नहीं था! बहुत शोरशराबा, बहुत उछल-कूद, ऐसा था यह सब। लेकिन पाटीदार कैसे थे वे! क्षत्रियों का रक्त था। पूर्व जन्म के पुण्य की वजह से लोग राजा की तरह रखते थे प्रश्नकर्ता : क्या शुरू से ही ऐसा नियम था उनका? दादाश्री : उन्हें लोग ऐसा कहते थे कि उनमें 'मियाँपन,' बहुत है। मियाँपन क्यों कहते थे? बादशाही होती तो मियाँपन नहीं कहते। यह तो ऐसा था कि घर पर बादशाही नहीं थी। प्रश्नकर्ता : बादशाही नहीं हो तो उसे मियाँपन कहते हैं ? दादाश्री : वर्ना और क्या कहते? बहुत मियाँपन लेकिन मुँह पर कहकर तो देखो! __ प्रश्नकर्ता : उनके मुँह पर नहीं कहते थे। आपके बड़े भाई ने जो बात की, तो पिछले जन्म के संचित पुण्य के हिसाब से वे मियाँपनी रखते थे न? दादाश्री : किस हिसाब से? प्रश्नकर्ता : बड़े भाई जब ऐसा कहते थे कि 'मैं बाहर नहीं खाऊँगा। मैं अंदर ही खाऊँगा' लेकिन वह तो उनका पुण्य होगा तभी लोग उस अनुसार करते थे न?
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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