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________________ [7] बड़े भाई 183 पूर्व जन्म के योगी थे, इसलिए उनका ज़बरदस्त 'ओ' पड़ता था प्रश्नकर्ता : आपको मणि भाई से बहुत डर लगता था, दादा? दादाश्री : बहुत ! यदि अंदर सिंह बैठा हो तो जा सकता था लेकिन अगर ये बैठे हुए हों तो नहीं जा सकता था। मुझे तो उन्हें देखते ही पसीना आ जाता था। उन्हें देखते ही घबराहट हो जाती थी। उनका दिमाग़ बहुत ही सख्त और प्रभावशाली, तो मुझे भी ऐसा-ऐसा होता था, घबरा जाता था। उन्हें देखते ही डर लगता था। प्रश्नकर्ता : कैसा डर लगता था, दादा? दादाश्री : उनकी आँखें ही ऐसी थीं कि मुझे बहुत डर लगता था। मुझे बहुत डर लगता था उनके साथ रहने में भी। वे आँखें अलग ही तरह की थीं! लोग उसी से घबरा जाते थे न! और यों उनका चेहरा देखें तो बहुत ही भव्य, लेकिन चेहरा देखते ही घबराहट हो जाती थी! प्रश्नकर्ता : लेकिन बड़े भाई का डर क्यों? दादाश्री : बहुत डर! बड़े भाई से मुझे बहुत डर लगता था। ऐसा नहीं था कि मैं छोटा था इसलिए डरता था, लेकिन जब मेरे बड़े भाई बाहर निकलते थे, तब यहाँ जोगी दास का पूरा मुहल्ला घबरा जाता था। जब सरकारी ऑफिस में जाते थे, तब वहाँ का पूरा ऑफिस घबरा जाता था क्योंकि उनकी पर्सनालिटी ही ऐसी थी। बाहर निकलते थे तो लोगों को ऐसा दिखाई देता था जैसे सिंह बाहर निकला। आँखें ही ऐसी दिखती थीं क्योंकि अंदर उनका शील भी था, एक प्रकार का। लेकिन यदि उनका वह शील पूर्ण होता तो वे अलग ही तरह के इंसान होते! प्रश्नकर्ता : लेकिन कल आप जो बात कर रहे थे, उन्हें वैसा शीलवान कह सकते हैं न? आपने जो कहा था कि यदि शीलवान आएँ तो साँप भी एक-दूसरे पर चढ़ जाते हैं। दादाश्री : नहीं। पर वे ऐसे शीलवान नहीं थे। वे तो यहाँ (बड़ौदा) आकर फिर सारा शील लीकेज हो गया, लेकिन फिर भी कुछ बच गया।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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