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________________ 176 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) ने कहा, 'अच्छा हुआ तू आ गया। आज तो हालत ज्यादा खराब है। फिर कुछ देर बाद वे गुज़र गए। रात को ही उन्होंने सफर तय कर लिया। तो मेरे आते ही फादर चल बसे! अतः जिसके कंधों पर जाना हो उसी के कंधों पर चढ़ते हैं। मैं चार घंटे पहले आया था बड़ौदा से, जबकि बड़े भाई एक दिन पहले ही आकर गए थे। लेकिन जिसके कंधे पर अर्थी जानी होती है, जितना हिसाब होता है, वही चुकता होता है। उन्हें मेरे कंधे पर चढ़कर जाना था, तो उस प्रकार से गए। हमारे ऋणानुबंध खत्म किए। फिर लोग कहते हैं कि 'भाई, इसके कंधे पर चढ़कर जाना लिखा था'। तो इनके कंधे पर चढ़कर गए, मणि भाई के कंधे पर नहीं'। लोगों ने ऐसा सब ढूँढ निकाला। सभी के फादर अभी तक हैं, मेरे क्यों नहीं? मैं बीस साल का था तब फादर का देहांत हो गया। तब मुझे समझ में आया कि मैंने क्या दगा किया था, जिसकी वजह से फादर का देहांत हो गया। इसका मुझे तुरंत पता चल गया, और मदर आराम से और भी पचास साल तक रहीं। अतः यह सब इस दगाबाज़ी की वजह से हैं। तो अब ये सारी दगाबाज़ी छोड़ देने की ज़रूरत है। जहाँ कहीं भी ऐसा कुछ हुआ हो न, तो वहाँ कुदरत में वह नोट हो जाता है। तब मुझे तुरंत पता चल गया कि इससे क्या होता है ? लोगों के तो, पचास-पचास साल के होने पर भी फादर जिंदा होते हैं और मेरा क्या है ? लेकिन यह गुनाह किए थे। प्रश्नकर्ता : फादर का देहांत हो गया तो उसमें क्या गुनाह है? दादाश्री : वह दगाबाज़ी ही की थी न! अतः पितृ भावना के प्रति दगाबाज़ी की थी न! उस दगाबाज़ी का परिणाम मिला। मातृभाव में ऐसा नहीं किया था, तो मातृभाव रहा। चलो अब, यह नई बात निकली। मेरे फादर की बात निकली। मैंने भी हिसाब निकाला था। मैंने कहा, 'बीस साल की उम्र में इन सब
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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