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________________ 164 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) कैसे-कैसे होते हैं! कितने बड़े, महान! इतने बड़े नोबल माइन्ड वाले थे, फिर भी कहते हैं कि 'अभी तो मेरी आँखें अच्छी हैं न!' तब मैंने सोचा 'नीयत है इनकी जीने की। मौलिक खोज दादा की, आज बा ने हस्ताक्षर कर दिए मैं तो रोज़ जाँच करता रहता था, हर बात में जाँच करता था। हमारे वहाँ मामा के बेटे रावजी भाई आए हुए थे। वे उम्र में मुझसे चार-पाँच साल छोटे थे। मैं और रावजी भाई, हम दोनों साथ में बाहर सो रहे थे। रात के बारह बज चुके थे तो हम तो सो गए थे। रात के बारह-एक बजे होंगे और हमारी बा के पेट में दर्द हुआ होगा तब वे धीरे से बोलने लगी, तो रात को एक बजे मैं जाग उठा। तब अंदर वे बोल रही थीं 'हे भगवान अब तो उठा ले मुझे, अब छूट जाए तो अच्छा है! अब छोड़', तब मैंने साथ में सो रहे रावजी भाई को जगाया। मैंने उन्हें हिलाकर जगाया। मैंने कहा 'देखो, बा ने हस्ताक्षर कर दिए!' मैं रोज़ कहता हूँ हस्ताक्षर, तो आज हस्ताक्षर कर दिए, सुनना। तब बा फिर से बोले, 'हे भगवान! उठा ले'। दो बार बोले। दूसरी बार में उन्होंने सुन लिया। मुझसे कहा, 'क्यों ऐसा कहा? ऐसा क्यों कहा? मैंने कहा, 'कोई दुःख हो तभी कोई कहेगा न!' क्योंकि अंदर जो दुःख होता है वह सहन नहीं हो पाता तब इंसान ऐसा भाव कर लेता है कि 'अरे! छुट जाएँ तो अच्छा' तो वे हस्ताक्षर कर देते हैं, देखो न ! बा ने हस्ताक्षर कर दिए। इसी तरह से कुदरत हस्ताक्षर करवा लेती है। अंदर ऐसी मार लगाती है कि हम से हस्ताक्षर करवा लेती है। फिर हस्ताक्षर कर लेंगे या नहीं? अब कुछ ही दिनों के मेहमान हैं, करो तैयारी तो मृत्यु से पंद्रह दिन पहले बा रात को ऐसा बोल रहे थे। तब मैंने रावजी भाई से कहा 'ये तैयारियाँ हो गई, हस्ताक्षर करवा लिए'। तब मुझसे पूछा, 'कैसे?' तब मैंने कहा, 'आपने हस्ताक्षर नहीं सुने ?' तब कहा, 'सुना तो है'। मैंने कहा, 'अब तैयारी करके रखो।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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