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________________ 160 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) दादाश्री : हाँ। बा ने मुझसे एक बार पूछा कि 'भाई, आज तूने दातुन नहीं किया'। तब मैंने कहा कि 'अगर इकट्ठे करे तो पूरा कमरा भर जाए उतनी दातुन इकट्ठी की होंगी फिर भी यह जीभ साफ नहीं हई तो इसका अंत है या नहीं?' तब बा ने कहा, 'तेरी ऐसी बातें सनना मुझे बहुत अच्छा लगता है, फिर भी दातुन तो करना पड़ेगा न?' बा का मन आहत न हो, इसलिए तीन-तीन बार खाता था प्रश्नकर्ता : दादा, आप भी बा का बहुत ध्यान रखते थे न? दादाश्री : बड़ौदा में जब मैं बाहर निकलता था तो मेरा सर्कल ऐसा था कि किसी जगह पर फ्रेन्ड के वहाँ जाता तो फ्रेन्ड के वहाँ कोई गेस्ट आए हुए होते तो कहते कि 'आज तो खाने पर बैठ ही जाओ'। तब मुझे बैठना ही पड़ता था, मेरा चलता ही नहीं था। आज ये एकदम नई ही तरह के आम लाए हैं, आप बैठ जाओ'। वह पीछे पड़ जाता था, तब फिर उसे मैं मना नहीं कर पाता था। वहाँ पर एक पूड़ी और इतना थोड़ा सा रस ज़रा-जरा सा खा लेता था। फिर मैं कहता था कि 'मेरी तबियत ज़रा ठीक नहीं है, तबियत ठीक नहीं है' तो वहाँ पर इतना ही खाता था। फिर दूसरी जगह किसी जान-पहचान वाले के यहाँ जाता और वह कहता कि 'आज तो आप खाना खाकर जाओ', तब फिर से कभी ऐसा संयोग मिल जाता तो दूसरी जगह पर भी खा लेता था, लेकिन शुरू से मैं ज़रा सा ही लेता था। मैं जानता था कि यह सब तो खेल है अपना। फिर जब घर आता था तब बा के साथ खाता ही था। नहीं तो बा बिना खाए ही बैठी रहती थीं और अगर घर पर आकर न खाऊँ तो बा को बुरा लगता। बा कहतीं कि 'तू मेरे साथ नहीं खाता है लेकिन मैं तेरे साथ खाती हूँ'। तब फिर बा के साथ खा लेता था। प्रश्नकर्ता : तो अगर बा के साथ नहीं खाते तो नहीं चलता था? दादाश्री : नहीं। अगर मैं नहीं खाऊँ तो बा का मन दुःखता था।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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