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________________ ज्ञानी पुरुष ( भाग - 1 ) सा भी नहीं बिगड़ना चाहिए, चाहे कैसे भी संयोग हों। अगर यहाँ किसी भी समय कोई गेस्ट आए, चाहे आधी रात को कितने ही लोग आएँ तब भी मन का भाव ज़रा सा भी नहीं बिगाड़ना चाहिए'। उस दिन दोनों से मैंने यह व्रत लिवाया। 152 आपका मन बिगड़ेगा तो वैराग्य ले लूँगा 'दोपहर बारह बजे बाद यदि कोई व्यक्ति आए और आपकी तबियत ज़रा नरम हो तो सोते रहना। मैं खुद बना लूँगा। आया है तो भाव नहीं बिगाड़ना, वर्ना खाना तो फिर भी खिलाना ही पड़ेगा लेकिन भाव बिगाड़कर खिलाओगे तो मुझे नहीं पुसाएगा । आचार बिगड़ेगा तो चलेगा लेकिन आपका मन बिगड़ेगा तो मैं वैराग्य ले लूँगा' । मैंने इतनी धमकी दी थी। उसके बाद उन्होंने ऐसा नहीं किया। उसके बाद से कभी भी किसी के लिए भाव नहीं बिगड़ा ज़रा सा भी । ऐसा कैसे शोभा दे सकता हैं हमें ? उसके बाद से सब बदल गया क्योंकि उनमें डर बैठ गया कि 'ये वैराग्य ले लेंगे', तो उसके बाद घर पर वातावरण ऐसा ही हो गया । चाहे कोई भी आए लेकिन भाव नहीं बिगड़े। मैंने कहा, उसके बाद तो कई सालों तक ऐसा रहा, मन भी नहीं बिगड़ा । फिर शरीर कमज़ोर हो गया, अब तो कोई किसी का कर ही नहीं सकता न, लेकिन ऐसा ही रहा था । फिर अभी तो बुढ़ापा आ गया, इसीलिए ऐसा सब नहीं हो पाता । सादा बनाना लेकिन भाव मत बिगाड़ना लोग कहाँ आते हैं बेचारे ! वे तो एनी टाइम आ जाते हैं तो मैंने उनसे कहा, 'आपको खाना नहीं बनाना हो तो हर्ज नहीं है लेकिन जो कुछ भी हो, वह परोस देना। जो आ पहुँचे हैं उनके लिए खिचड़ी, सब्ज़ी जो भी हो, वह दिल से बनाना । अंदर भाव बिगड़ते रहें तो वह किस काम का ? वे लोग भी समझ जाएँगे आपकी आँखों पर से कि इन लोगों के भाव औरों जैसे ही हैं ' ।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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