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________________ तो वे 'अक्रम विज्ञान के प्रणेता' बनकर अन्य लोगों के कल्याण के निमित्त बन सके। ऐसी तो कई सारी बातें यहाँ पर लिखी गई हैं, जिनके अध्ययन से हमें उनके अनोखे व्यक्तित्व के स्वाद का आनंद मिलता है और अहोभाव होता है। धन्य है अंबालाल जी को! धन्य है उनके मातापिता को! धन्य है उनके राजसी कुल को! उनका जीवन अंबालाल मूलजी भाई पटेल के रूप में शुरू हुआ था और खुद ज्ञानदशा से ज्ञानी पुरुष बनकर 'दादा भगवान' के स्वरूप तक पहुँच सके। ऐसे दादा नहीं मिलेंगे, दादा का ऐसा ज्ञान नहीं मिलेगा और ऐसा जीवन चारित्र जानने को नहीं मिलेगा। अद्भुत! अद्भुत! अद्भुत! __ बचपन से ही उनके जीवन का ध्येय क्या था? तो वह यह कि, 'मुझे ऊपरी नहीं पुसाते थे। मुझे भगवान जानने थे। सचमुच के भगवान कहाँ हैं, क्या करते हैं, किस स्वरूप में हैं, मेरा जीवन उसकी प्राप्ति के लिए था'। और वह ढूँढते-ढूँढते फिर जीवन में जो शिक्षण आया, फादर-मदर, भाई-भाभी सब के साथ के व्यवहार में भी उनकी यह खोज रुकी नहीं थी और अंत में उसे प्राप्त कर सके। निरंतर उनके चित्त में भगवान से संबंधित यह एनालिसिस चलता रहता था। वे मेरे अंदर ही बैठे हुए हैं, हर एक के अंदर बैठे हुए हैं, ऐसा विश्वास तो उन्हें हो गया था और अंत में 1958 में जब ज्ञान प्रकट हुआ तो पूर्णाहुति हुई। उसके बाद तो उनका जीवन जगत् कल्याण में ही बीता, लेकिन ऐसे ज्ञानी पुरुष के बचपन का वर्णन उन्हीं के मुँह से, उन्हीं के शब्दों में हमें, तलपदी भाषा में मिलता है और फिर साफ-साफ बातें हैं। उनकी खुद की देखी हुई और अनुभव की हुई। वास्तव में यह एक अद्भुत पुस्तक बनी है। जगत् कल्याण के इस मिशन में दादा की कृपा है, नीरू माँ के आशीर्वाद हैं और इसमें देवी-देवताओं की ज़बरदस्त सहायता है। इसलिए इस दुनिया को ऐसे अनुपम ज्ञानी पुरुष की पहचान हो, उसमें 18
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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