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________________ 102 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) दादाश्री : मुझे ज़रा ज़्यादा समझ में आता था यह सब। लेकिन यह सब तो गलत है न! अभी, मेरी तो आँखें हैं लेकिन अगर किसी की आँखें न हों तो उसकी क्या दशा होगी? छिहत्तर साल की उम्र में जब पैर न चलें, बाकी कुछ भी न चले, (ऊपर से) उन चाचा को पकड़ना भी पड़ता था। एक चाचा को दोनों ही आँखों से दिखाई नहीं देता था। वहाँ पर भी पिल्ले छोड़ दिए थे। गलत है न! इस तरह का बहुत पागलपन था। हमारी बचपन की जिंदगी देखते हैं तो बहुत बुरा लगता है। उन बुजुर्गों की कैसी दशा हुई होगी? बुढ़ापा यानी पुराना मंदिर! उनकी क्या दशा होती होगी? वह नए मंदिर वालों (जवान लोगों) को क्या पता चले? बूढ़े लोग जब ऐसे-ऐसे करके चलते थे न, तब उसी तरह उनके पीछे चलकर मज़ाक उड़ाया है लेकिन पता नहीं था कि जब यह मंदिर पुराना हो जाता है तो क्या दशा होती है? मज़ाक उड़ाना कहाँ से सीखते हैं ? अपने इन गुरुओं से (आसपास वाले लोगों से)! जो भी संयोग मिलते हैं, वे सब हमारे गुरु। वे जैसा करते थे, हम भी वैसा ही करते थे। वे सभी यदि माता जी के पैर छूते थे और ऐसी मीठी-मीठी बाते करते थे तो हम भी वैसा ही करते थे। वे सब मज़ाक उड़ाते थे तो हम भी मज़ाक उड़ाते थे। अधिक बुद्धि का दुरुपयोग, मज़ाक उड़ाने में हमारी बुद्धि अधिक थी तो, उसका दुरुपयोग किसमें हुआ? कम बुद्धि वाले का मज़ाक उड़ाने में! जब से मुझे यह जोखिम समझ में आया, तभी से मज़ाक उड़ाना बंद हो गया। कहीं मज़ाक उड़ाना चाहिए? मज़ाक उड़ाना तो भयंकर जोखिम है, गुनाह है ! किसी का भी मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए। प्रश्नकर्ता : लेकिन अधिक बुद्धि वाले का मज़ाक उड़ाने में क्या हर्ज है? दादाश्री : लेकिन कम बुद्धि वाला स्वाभाविक रूप से मज़ाक उड़ाएगा ही नहीं न!
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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