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________________ [3] उस ज़माने में किए मौज-मज़े तब भी कोई परेशानी नहीं थी लेकिन नहाने के बाद साबुन न उड़े, उस तरह से आखिरी कपड़ा धो देते थे। क्या धोना नहीं पड़ेगा? जल्दी उठने के लिए की थी कला प्रश्नकर्ता : और कौन से प्रयोग करते थे आप? दादाश्री : एक बार जब मैं बाईस-तेईस साल का था, तब कहीं बाहर जाना था। घर पर कोई नहीं था, अकेला था। मुझे जल्दी वाली गाड़ी में जाना था। बड़ौदा से साढ़े छः-पोने सात बजे जो गाड़ी चलती है, उसमें । और हमें तो सुबह उठने की बहुत झंझट थी। ठेठ साढ़े ग्यारह तक नाश्ता चलता था रात का, तो सुबह-सुबह उठ नहीं पाते थे। प्रश्नकर्ता : साढ़े ग्यारह। दादाश्री : हाँ... सस्ते नाश्ते और होटल फर्स्ट क्लास और ऐसा नहीं, ऐसा सब गंदगी वाला नहीं! तब फिर मैंने सोचा, 'अब क्या करेंगे? अगर सुबह नहीं उठ पाए तो गाड़ी छूट जाएगी और कल सुबह जल्दी वाली गाड़ी में जाए बगैर कोई चारा नहीं है'। बाईस साल की उम्र और खिलंदड़ ज़िंदगी, इसलिए फिर मैंने कला ढूँढ निकाली। मैंने कहा, 'नल खुला रखो और बाल्टी पर एक थाली रख दो' तो मैंने एक थाली इस तरह रख दी और नल खोलकर सो गया। इसलिए ताकि आवाज़ होती रहे। तो फिर बाल्टी पर थाली रखी थी न, तो सुबह थाली पर पानी की धड़-धड़ आवाज़ हुई। वह भी पानी का समय खत्म होने पर बंद हो गई। और फिर में पाव घंटे-आधे घंटे बाद जगा। साढ़े सात बजे उठा तो गाड़ी जा चुकी थी। थाली रखी थी उसकी बहुत आवाज़ हुई लेकिन कोई जागे तब न! सुबह चूक गए और भाई अकेले थे इसलिए आराम से सूर्यनारायण के आने के बाद उठे। प्रयोग तो सभी करके देखे। अब थाली की ऐसी आवाज़ होने पर
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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