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________________ [3] उस ज़माने में किए मौज-मज़े 81 प्रश्नकर्ता : ईरानी की चाय की बहुत तारीफ़ होती थी। दादाश्री : हाँ, जगह-जगह, कोने-कोने पर मिलती ही थी। हर एक कोने पर ईरानी की दुकान होती थी। ताजमहल होटल से भी अच्छी लगी ईरानी की चाय प्रश्नकर्ता : ताजमहल होटल की चाय की भी बहुत तारीफ़ होती थी। आपने वह पी है, दादा? दादाश्री : मैं एक दिन गया था ताजमहल में। ताजमहल में हमें नहीं पुसाता न! मैंने कहा, 'चलो ताजमहल की चाय पीते हैं'। प्रश्नकर्ता : किस सन में? दादाश्री : 1933 में, पचास साल हो गए हैं उस बात को। मैंने कहा, "चलो, लोग 'ताजमहल, ताजमहल' कहते हैं तो हम भी वहाँ जाकर चाय तो पीए! देखा जाएगा।" तो पैसे वगैरह लेकर गए थे। तो बारह आने चाय के लिए और हमने उस दिन वह चाय देख ली भाई। ये ताजमहल के ऐसे ठाठ हैं। ये सिर्फ जगह के और बड़ेपन के पैसे लेते हैं। बाहर जो चाय एक आने में मिलती है, उसी के वहाँ पर बारह आने लेते हैं। यह तो एटीकेट वालों का काम है! हमें तो ऐसा सब एटीकेट आता नहीं है न! प्रश्नकर्ता : लेकिन उस समय में भी बारह आने लिए? दादाश्री : बारह आने लिए थे। हम छः लोग गए थे, तो साढ़े चार रुपए ले लिए। मैंने कहा, 'यह तो हमें नहीं पुसाएगा, इसके बजाय तो अपना ईरानी वाला अच्छा'। प्रश्नकर्ता : ईरानी की चाय दो आने में मिलती थी। दादाश्री : नहीं-नहीं! दो आने नहीं, एक आना। शुरू में एक आना था लेकिन एक आने में अच्छी... प्रश्नकर्ता : सिर्फ चाय ही पीते थे या नाश्ता भी करते थे?
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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