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________________ 76 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) दादाश्री : तो दो रुपए खर्च करते थे इसलिए छः-सात दोस्त साथ में घूमते रहते थे। वे 'हाँ जी, हाँ जी' करते रहते थे और हमें वह अच्छा लगता था। 'हाँ जी, हाँ जी' करने वाला। प्रश्नकर्ता : दो रुपए में? दादाश्री : हाँ। दो रुपए में तो छ:-सात दोस्त पीछे-पीछे घूमते थे। तो पहले उन लोगों की स्थिति कैसी होगी? हमारे पास दो रुपए, उनमें से कुछ मिलेगा इस कारण से हमारे पीछे-पीछे घूमते रहते थे बेचारे। 'हाँ जी, हाँ जी' भी कहने लगते थे। अभी तक आपने ऐसा कोई सुख देखा है कि दो रुपए में इतने दोस्त आपके पीछे-पीछे घूमें, हं? घूमते हैं क्या पीछे ? पहले तो मंदी बहुत थी न! दोपहर होती थी तो बडौदा जैसे शहर में भी हमारे गाँव के जो लोग थे, हमारे छ: गाँव के परिचित होते थे, तो उनमें दो-चार लोग तो ऐसे भी निकलते थे कि दोपहर होते ही चाय पीने के लिए आ ही जाते थे। घर पर पत्नी से कहते थे कि 'चलो आज, वहाँ जाकर चाय पी आएँ'। यानी घर पर चाय बचाने के लिए एक मील तक चलते-चलते आते थे और वापस एक मील चलकर जाते थे। बचाया क्या? तो कहते हैं, 'चाय'। अभी है क्या कोई ऐसी झंझट? अभी तो चाय पिलाने पर भी खुशी नहीं होती, खाना खिलाने पर भी खुशी नहीं होती। उन दिनों तो कहीं दावत होती थी तो उससे चार दिन पहले से मन्नत मानते थे। खाना अच्छा बनता था न, तो सुबह से उनके मुँह में पानी आता रहता था। 'आज तो खीर खानी है, आज खीर खानी है'। और आजकल तो किसी को खाना खाने की पड़ी ही नहीं है न! यह खाना वगैरह खाना कब से बंद हो गया? रोज़ की दो-तीन चाय पीना शुरू हुआ तब से। पहले तो मिठाई चखी ही नहीं होती थी न ! अब तो निरी शक्कर की चाय मिलती है इसलिए फिर स्वाद बिगड़ गया है सब का। पहले तो मीठा आता था तो जैसे भगवान मिल गए! उन दिनों परवल एक रुपए रतल (454 gm) बिकते थे तो गायकवाड़ सरकार के वहाँ पर खाते थे। प्रश्नकर्ता : राजा-महाराजा के वहाँ?
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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