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________________ [2.2] मैट्रिक फेल जाएगा! शादी करके फँसे तो सही न, लेकिन नए फँसाव में सूबेदार तो नहीं बने न! अतः मैं इस दुनिया में बॉस बनाना ही नहीं चाहता था। जो होना हो वह हो जाए इस दुनिया का लेकिन मैं बॉस नहीं बनाऊँगा, स्वीकार ही नहीं करूँगा। नौकरी नहीं करूँगा, ऐसा कहा। इसलिए मैं संभलकर चलने लगा कि यदि मैं सूबेदार बन जाऊँगा तो सरसूबेदार मुझे डाँटेगा। ऊपरी तो चाहिए ही नहीं मुझे। यों घर के माँ-बाप हैं, वे क्या कम ऊपरी हैं ! वे कुछ कम हैं, उनका तो चुकाना ही पड़ेगा न ऋण? फिर वाइफ आईं, वे भी ऊपरी मानी जाएँगी न? फिर वापस दूसरे ऊपरी कहाँ बनाऊँ? मुझे ऐसा ऊपरी नहीं चाहिए। एक तो पिता जी डाँटते हैं, बड़े भाई डाँटते हैं और फिर यह नया डाँटने वाला बढ़ाऊँ! अब नहीं चाहिए डाँटने वाले। जो हैं उनका तो निबेड़ा ला दूंगा लेकिन वापस नया कहाँ बनाऊँ ? मुझे डाँटने वाला अच्छा नहीं लगता था। जो भगवान से भी न दबें वे किससे दबेंगे? मुझे तो सिर पर भगवान भी नहीं चाहिए तो इस सरसूबे को कहाँ चढ़ाऊँ? यह एक ऊपर है वह भी मुझे नहीं पुसाता तो यह सरसूबेदार कैसे पुसाएगा? मैं तो तेरह साल का था तब मैंने यह तय किया था कि मुझे सिर पर भगवान भी ऊपरी (बॉस, वरिष्ठ मालिक) नहीं चाहिए। यदि भगवान ऊपरी होंगे तो फिर जीने का अर्थ ही क्या है? ___ मैं भगवान के तहत भी नहीं रहना चाहता था, लेकिन क्यों? जो भगवान से भी नहीं दबता, वह किससे दबेगा? यों किसी से दबे हुए नहीं रह सकते। यानी मैंने तय कर लिया कि मुझे तो सिर पर भगवान भी नहीं चाहिए, नहीं चाहिए, नहीं चाहिए लेकिन इस संसार में भी कोई ऊपरी नहीं चाहिए। प्रश्नकर्ता : हाँ, शालिभद्र की तरह सिर पर कोई मालिक नहीं चाहिए।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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