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________________ 54 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) है कि वे सूबेदार बने हैं तो उनके पिता जी का कितना रौब पड़ा, भाईयों का कितना रौब पड़ा! वैसा ही हमारे फादर व ब्रदर के मन में हुआ कि 'अगर यह सूबेदार बन जाए तो हमारा कितना रौब जमेगा!' वे दोनों रौब जमाने के लिए मुझे सूबेदार बनाना चाहते थे। तो मैंने यह सुन लिया। ये लोग कुछ पैंतरा रच रहे हैं मेरे लिए। 'ये लोग पैंतरा क्यों रच रहे हैं?' फिर हआ कि 'नहीं, अपने-अपने मतलब के लिए कर रहे हैं। वे कहते हैं, 'मेरा रौब पड़ेगा,' और वे कहते हैं 'मेरा रौब पड़ेगा' इस तरह से लेकिन मेरी क्या दशा होगी? उनके रौब के लिए मेरा तेल निकालने बैठे हैं ये! उनका रौब पड़ेगा लेकिन मेरा तो दम निकल जाएगा न! इसमें मेरा क्या है? मैंने कहा, 'ये लोग मुझे शीशे में उतारने की कोशिश कर रहे हैं, फादर और ब्रदर। ये लोग इस तरह अच्छे कपड़े पहनकर और पगड़ी बाँधकर घूमेंगे और कचूमर मेरा निकलेगा। मुझे ऐसा सूबेदार नहीं बनना है। उन दोनों को रौब जमाना था। अरे! आप दोनों को इसका शौक है, आप दोनों का रौब जमेगा लेकिन मेरा क्या होगा? मैं सूबेदार बनूँगा फिर सरसूबेदार मुझे झिड़केगा मैं समझ गया कि ये लोग सर्विस करवाने के लिए मुझे फंसा रहे हैं कि 'कभी यह सूबेदार बनेगा'। 'लेकिन ऊपर वाला सरसूबेदार तो मुझे झिड़केगा न! क्या वह आपको डाँटेगा?' सरसूबेदार किसे डाँटता है? प्रश्नकर्ता : सूबेदार को। दादाश्री : उन्हें क्यों डाँटेगा? सरसूबेदार तो मुझे डाँटेगा, उस समय क्या वे सुनने आएँगे? अतः ये तो मुझे जाल में फँसाने के लिए ऐसा कर रहे हैं लेकिन मुझे कहीं जाल में नहीं फँसना है। इसीलिए इन लोगों ने सूबेदार बनाने की व्यवस्था की। मैं समझ गया कि ये लोग अपने स्वार्थ के लिए सबकुछ कर गुज़रेंगे। ‘इन सब के सुख की खातिर
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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