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________________ [2.1] पढ़ाई करनी थी भगवान खोजने के लिए दादाश्री : सभी में कॉमन । यह मुझे चौदह साल की उम्र में समझ में आ गया। यह अच्छी बात है न! ऐसी समझ आ जाए तो ! उसे दिमाग़ खुलना कहते हैं ! तब मुझे पता चला कि सभी इंसानों में ऐसी कोई छोटी से छोटी चीज़ होनी ही चाहिए न ! और भगवान कहते हैं कि ‘मैं सभी में हूँ', तो मुझे समझ में आ गया कि आत्मा सर्व में है भगवान अंदर हैं और लोग भगवान को ढूँढने के लिए बाहर भाग - -दौड़ कर रहे हैं। I 49 हाँ, सभी जगह, सभी क्रीचर्स में और वराइअटी ऑफ क्रीचर्स। क्रीचर्स की बेहिसाब वराइअटीज़ हैं और उनमें भगवान लघुत्तम भाव से रहे हुए हैं, अविभाज्य रूप से । वह मुझे चौदह साल की उम्र में समझ में आ गया था फिर मेरी सोच आगे बढ़ी | इसलिए मैंने मास्टर जी से कहा कि 'ये रकमें, यह सिखाया तो बहुत अच्छा हुआ। इनमें जो लघुत्तम संख्या है, जो वस्तु बची है वह, इन सभी संख्याओं में जो अविभाज्य है, वे भगवान हैं। मुझे भगवान मिल गए'। तो मास्टर जी ने मुझसे कहा, 'बैठ जा, बैठ जा, तुझ में अक्ल नहीं है, तुझे समझ में नहीं आता है'। यानी तभी से यह झंझट ! झुका स्वभाव लघुत्तम की ओर, तो अंत में बने लघुत्तम इस लघुत्तम पर से ही फिर मेरा स्वभाव लघुत्तम की तरफ झुकता गया। तब लघुत्तम नहीं बन पाया, झुकाव ज़रूर था लेकिन अब अंत में मैं लघुत्तम बनकर रहा, अभी । बाइ रिलेटिव व्यू पोइन्ट आइ एम कम्प्लीट लघुत्तम, बाइ रियल व्यू पोइन्ट आइ एम कम्प्लीट गुरुत्तम । बाइ रिलेटिव व्यू पोइन्ट लघुत्तम का मतलब है कि इस संसार की सभी बातों में, जब तक यह सांसारिक देह, वेश वगैरह है, तब तक उस बारे में मैं लघुत्तम हूँ । यानी कि मुझसे छोटा अन्य कोई जीव है नहीं ! मैं लघुत्तम ही हूँ । मैंने पुस्तक में ऐसा लिखा है कि 'मैं लघुत्तम हूँ !' और बाइ रियल व्यू पोइन्ट मैं गुरुत्तम हूँ। रिलेटिव में जितना लघुत्तम बनते हैं, उतना ही रियल में गुरुत्तम बनते जाते हैं।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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