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________________ [2.1] पढ़ाई करनी थी भगवान खोजने के लिए ___45 आया हूँ। पूरे वर्ल्ड के कल्याण का निमित्त लेकर आया हूँ और कल्याण अवश्य होना ही है। कितने ही मास्टर जी हम पर खुश प्रश्नकर्ता : फिर भी आप किसी मास्टर जी को तो पसंद होंगे न? दादाश्री : मैं जब सेकन्ड में पढ़ता था न, तब हमारे एक मास्टर जी थे। तब सब के ब्रेन कैसे थे! हाइ क्लास ब्रेन थे सब के। क्या नाम था उनका? नाम भूल गया हूँ मैं। प्रश्नकर्ता : विठ्ठल भाई। दादाश्री : हाँ, विठ्ठल भाई। बहुत अच्छे थे। हँसते चेहरे वाले। वे मेरे सामने देखकर हँसते थे। फिर उन्होंने भरुच में क्लिनिक खोली तो जब मैं दो दिन के लिए भरुच गया था, तब मैं वहाँ पर गया था। मैंने कहा, 'आपसे मिलने आया हूँ। तो कहने लगे, 'यहीं पर रहना, कहीं और मत जाना'। तब रहा था उनके पास दो दिन। बहुत अच्छे इंसान थे! वे तो बहुत मिलनसार थे। छोटे बच्चों के साथ भी बातचीत करते थे, हँसी-मज़ाक करते थे। हँसमुख स्वभाव वाले... __दूसरे थे मणि भाई, वे फिफ्थ में मेरे टीचर थे। मणि भाई बहुत मिलनसार नहीं थे। शुरुआत में तो वे मुझ पर बहुत चिढ़ते थे क्योंकि मैं बिन्दास था और उन्हें बिन्दास लोग अच्छे नहीं लगते थे। प्रश्नकर्ता : हाँ, वे तो सभी पर गुस्सा हो जाते थे। दादाश्री : अरे! भाई बिन्दास इंसान भी अच्छा, कभी अगर पान खाना हो तो ला देगा। बाद में तो आखिर तक मुझ पर बहुत खुश थे मणि भाई। अब जब से यह अक्रम का हुआ न, उसके बाद उनके मन में
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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