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________________ 38 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) दादाश्री : कहते तो थे, लेकिन वे ऐसा नहीं कह पाते थे। वे घबराते थे कि बाहर निकलकर पत्थर मारेगा, सिर फोड़ देगा। मैं तो तेरह साल की उम्र में भी मास्टर जी को डराता था। स्कूल में मास्टर जी भी डरते थे मुझसे प्रश्नकर्ता : दादा, आप इतने शरारती थे? दादाश्री : हाँ, शरारती तो थे। माल ही पूरा शरारती, आड़ा माल। स्कूल में मास्टर जी-वास्टर तो मुझे अच्छे ही नहीं लगते थे। इन मास्टर जी के साथ तो बड़ी मुश्किल से निभाना पड़ता था। मास्टर जी के पास पढ़ने जाना पड़ता था न, वह तो बड़ी मुश्किल से निभा लेता था। क्योंकि घर से फुटबॉल को एक लगाते थे कि 'जाओ स्कूल' और स्कूल में मास्टर जी फुटबॉल को लगाते कि 'अब घर जाओ', तो फुटबॉल जैसी दशा हो जाती थी! स्कूल के मास्टर जी को तो मैं कुछ मानता ही नहीं था न! यों आता भी नहीं था और कुछ मानते भी नहीं थे। मास्टर जी मेरी बहुत बुराई करते थे और मैं उनकी, यही काम था, क्योंकि मुझे परवशता अच्छी नहीं लगती थी। ___मैं स्कूल जाने में इतनी गडबड करता था कि मास्टर जी ढूँढते रह जाते थे। क्लास में मेरी हाज़िरी नहीं होती थी। देर से जाता था तो मास्टर जी मुझसे डरते थे इसलिए सब से पीछे बैठाते थे। मुझे तो पीछे ही बैठना था वर्ना क्या मैं पास हो जाता? मैं तो, जो बच्चे फेल होते थे, उनमें से सब से आखिरी नंबर पर फेल होता था। प्रश्नकर्ता : क्लास में आप हाज़िर क्यों नहीं रहते थे, दादा? दादाश्री : जो अच्छे शिक्षक होते थे न, उनके पिरियड में मैं पूरा ध्यान देता था और बाकी में मैं ध्यान नहीं देता था। मैं उनसे ऐसा व्यवहार करता था, जैसे उन्हें अंटी में बाँध रखा हो। फिर कुल मिलाकर क्या हुआ कि मैं फेल हो गया। अंत में मैंने ऐसा सार निकाला कि सभी को पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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