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________________ (१.३) विभाव अर्थात् विरुद्ध भाव? २७ प्रश्नकर्ता : तो फिर यह भावकर्म किसका काम है? दादाश्री : ज्ञानावरण, दर्शनावरण, जैसे भी जो भी चश्मे (द्रव्यकर्म) 'उसे' प्राप्त हुए हैं, उनके आधार पर भाव होते हैं। प्रश्नकर्ता : आत्मा के आधार पर नहीं? दादाश्री : आत्मा ऐसा करेगा ही नहीं। यह विशेष भाव है, वह आत्मा का स्वभाव भाव नहीं है। __ अभी तो मानो कि सभी भाव अहंकार के ही हैं लेकिन मूल शुरुआत कहाँ से हुई थी? विशेष गुण उत्पन्न होता है और उससे भाव उत्पन्न होते हैं, भावकर्म शुरू हो जाते हैं। आत्मा का खुद का स्वभाव अलग चीज़ है। यह विशेष भाव दोनों की उपस्थिति में हुआ है और यह हमारी साइन्टिफिक खोज है और चौबीस तीर्थंकरों की यही मान्यता थी लेकिन यह बदल गया है, इसलिए उसका फल नहीं मिलता। फल नहीं मिलता उसका कारण यही है कि ऐसी कुछ भूलें चलती आ रही हैं न! प्रश्नकर्ता : जड और चेतन के सामीप्य भाव की वजह से इस प्रकार से होता है, ऐसा कह रहे हैं आप? दादाश्री : हाँ, बस। उससे विशेष भाव उत्पन्न हो गया है। आत्मा खुद के स्वभाव में है लेकिन पुद्गल विकृत हो गया है। क्योंकि दोनों के विशेष गुणधर्मों को लेकर पुद्गल विकृत हुआ है और उस विकृति को लेकर यह उठा-पटक चलती रहती है। एक्शन एन्ड रिएक्शन, एक्शन एन्ड रिएक्शन, चार्ज और डिस्चार्ज, चार्ज और डिस्चार्ज चलता ही रहता ___ यह विशेष भाव उत्पन्न हो गया है और यह मैं खुद देखकर बता रहा हूँ इसीलिए मुक्त हुआ जा सकता है, वर्ना नहीं हो सकते थे इस काल में मुक्त। दूषमकाल में मुक्त हो पाते होंगे? एक दिन भी चिंता रहित नहीं बीतता। दूषमकाल में आर्तध्यान-रौद्रध्यान बंद नहीं होते। यह तो अक्रम विज्ञान है इसीलिए ये छूट जाते हैं।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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