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________________ (१.१) विभाव की वैज्ञानिक समझ जाता है। इसलिए यदि खुद के स्वरूप का ही चिंतन हुआ, पुद्गल का चिंतन छूट गया, तो सबकुछ छूट जाएगा। प्रश्नकर्ता : अर्थात् अहंकार पुद्गल का चिंतन करता है इसलिए पुद्गल रूपी बन जाता है। अहंकार यदि स्वभाव का, खुद के आत्मा का... दादाश्री : स्वभाव के चिंतन को अहंकार नहीं माना जाता। जब तक अहंकार रहता है न, तब तक वह हमेशा पुद्गल का ही चिंतन किया करता है। कोई-कोई अहंकार ऐसा होता है, शुद्ध अहंकार, वह खुद का ही चिंतन करता रहता है, स्वाभाविक रूप से। इसलिए फिर स्वभावमय बन जाता है। जब से खुद के स्वभाव को पहचान लिया, तब से फिर अहंकार रहता ही नहीं है। व्यतिरेक में मुख्य, अहम् प्रश्नकर्ता : तो ऐसा नहीं है कि व्यतिरेक गुणों में अहम् भाव उत्पन्न होता है? दादाश्री : नहीं, अहम् भाव खुद ही व्यतिरेक गुण (मूल फर्स्ट लेवल का) है। जब तक दो वस्तुओं का सामीप्य भाव है और अहम् भाव खड़ा है तब तक सभी व्यतिरेक गुण रहते हैं। मूल अहम् भाव ही व्यतिरेक गुणों का मुख्य स्तंभ है। वह नहीं होगा तो कुछ भी नहीं है। सभी व्यतिरेक भाग जाएँगे, बेचारे! प्रश्नकर्ता : जिसे हम रोंग बिलीफ कहते हैं, वह और अहम् क्या एक ही हैं? दादाश्री : वह अहंकार ही है न! रोंग बिलीफ, वही अहंकार है और राइट बिलीफ, वह शुद्धात्मा है। प्रश्नकर्ता : ये कषाय कौन से गुण के पर्याय हैं ? दादाश्री : पुद्गल पर्याय हैं।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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