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________________ ६ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) प्रश्नकर्ता : दोनों में विशेष भाव उत्पन्न होता है? दादाश्री : दोनों में। पुद्गल परमाणुओं (जड़) में भी विशेष भाव होता है और आत्मा में भी विशेष भाव होता है। यह ऐसा है न, कि पुदगल जीवंत वस्तु नहीं है। वहाँ पर भाव नहीं होता लेकिन वह इस तरह का हो जाता है कि विशेष भाव को ग्रहण कर लेता है इसलिए उसमें भी परिवर्तन होता है और आत्मा में भी परिवर्तन होता है। अब इसमें आत्मा कुछ करता नहीं है, पुद्गल भी कुछ नहीं करता, विशेष भाव उत्पन्न हो जाता है। प्रश्नकर्ता : दोनों का संयोग आसपास में होने के कारण? दादाश्री : दोनों का संयोग हुआ कि तुरंत विशेष भाव उत्पन्न हो जाता है। प्रश्नकर्ता : मात्र संयोगों के कारण है या अन्य किसी कारण से दादाश्री : संयोगों के कारण है और दूसरा कारण है अज्ञानता, वह बात तो हमें अंदर मान ही लेनी है क्योंकि हम जो बात कर रहे हैं न, वह अज्ञानता के अंदर की बात कर रहे हैं, वह बाउन्ड्री है। ज्ञान की बाउन्ड्री की बात नहीं कर रहे हैं हम। अतः वहाँ पर अज्ञान दशा में (व्यवहार) आत्मा को यह विशेष भाव उत्पन्न हो जाता है। फिर (बाज़ी) पुद्गल के हाथ में आ जाती है। आत्मा फिर कैद हो जाता है जेल में। उसके बाद सारी पुद्गल सत्ता। फिर भी यदि कॉज़ेज़ बंद कर दिए जाएँ तो पुद्गल सत्ता बंद हो जाएगी। हम जब ज्ञान देते हैं तब कॉज़ेज़ बंद हो जाते हैं। विशेष भाव होना बंद हो जाता है, जो कि रूट कॉज़ है। कॉज़ बंद हुए कि खत्म हो गया, खुद को खुद की जागृति आ जाती है। अजागृति से खड़ा हो गया है यह। शुद्ध गुजराती में कहना हो तो अजागृति को 'बेभानपणु (बेहोशी) कहते हैं। प्रश्नकर्ता : दोनों के अलग-अलग विशेष भाव उत्पन्न होते हैं या दोनों को एक साथ एक ही होता है ?
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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