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________________ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) अन्य कोई कारण नहीं है लेकिन कहना तो पड़ेगा न! अभी कोई पूछे कि 'भाई, इसमें इसका कोई मूल कारण है ?' तो वह यह है। इसलिए मूल कारण के तौर पर कारण कहना पड़ता है। जगत् का मूल कारण तो, वास्तव में यह भी विशेष भाव की वजह से हो गया है। आज के साइन्टिस्ट यह समझ सकते हैं। दो चीज़ों की, जड़ और चेतन की उपस्थिति से तीसरा विशेष भाव-विशेष गुण उत्पन्न हो जाता है। इसलिए यह जगत् खड़ा हो गया है। यह जगत् विज्ञान से उत्पन्न हुआ है और विज्ञान ही इसका कर्ता है। इसीलिए साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स कहता हूँ और यह देखकर कह रहा हूँ। यह पुस्तक की बात नहीं है, यह गप्प नहीं है, बिल्कुल न्यू (नवीन) और खुल्ली बात है। प्रश्नकर्ता : पहला कॉज़ कौन सा है? सब से बड़ा कारण कौन सा है? दादाश्री : दो तत्त्व साथ में रहे न, वही कॉज़ है। ये सभी तत्त्व साथ में रहकर परिवर्तित होते हैं, परिवर्तनशील स्वभाव वाले हैं। इसलिए वही कॉज़ है, इसमें अन्य कोई कॉज़ नहीं है। बाकी, आत्मा तो वैसे का वैसा ही है। उसे कुछ भी स्पर्श नहीं कर सकता। वस्तु निर्लेप ही है, असंग ही है। सिर्फ इन दो वस्तुओं के साथ में रहने से यह व्यतिरेक गुण उत्पन्न हो गया है। वहाँ से फिर उसमें से कॉज़ेज़ एन्ड इफेक्ट, कॉज़ेज़ एन्ड इफेक्ट चलता ही रहता है। इस जगत् में छः इटर्नल (शाश्वत) वस्तुएँ हैं। छः तत्त्व हैं, वे सनातन तत्त्व हैं। वे सभी तत्त्व समसरण करते हैं। समसरण अर्थात् एक तत्त्व दूसरे तत्त्व के साथ आता है, उसमें जड़ और चेतन तत्त्व के समीप आने से व्यतिरेक गुण (विशेष गुण) उत्पन्न होता है, उसमें 'मैं पन' मानता है कि, 'मैं हूँ, मैं कर रहा हूँ। इस जगत् में दो चीजें हैं; 'आप' और 'संयोग'। 'आत्मा' बंधा
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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