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________________ मृत्यु के बाद शरीर को अग्नि को क्यों समर्पित किया जाता है ? इसलिए क्योंकि अग्नि ही उसे सब से स्पीडिली नष्ट करती है। बाकी, मिट्टी व पानी भी उसे धीरे-धीरे नष्ट करते हैं। अनंत काल से इसी मिट्टी की गंदगी चलती रही है न! पानी, वायु, पृथ्वी और अग्नि, उनमें मात्र जड़ तत्त्व ही नहीं हैं बल्कि वे सब जीव हैं। अग्नि के जो लाल-भूरे रंग दिखाई देते हैं, वे सभी जीव हैं। उन्हें तेउकाय जीव कहा गया है, जिनका शरीर अग्नि रूपी होता है। उसी प्रकार दूसरे तत्त्व भी (पृथ्वी, पानी व वायु) जीवों के शरीर ही हैं। जीव व अजीव, दो ही तत्त्वों से कितनी बड़ी रामलीला हो गई! हर एक चीज़ रूपांतरित होती रहती है। रूपांतरण अर्थात् उत्पाद, ध्रुव और व्यय। उत्पन्न होना और विनाश होना, वह पर्याय से है और स्थिर होना, वह स्वभाव से है। उदाहरण के तौर पर आप खुद शुद्धात्मा हो, ध्रुव के तौर पर हो और शाश्वत हो, और अवस्थाएँ यानी कि संयोग उत्पन्न होते हैं और उनका वियोग हो जाता है। संयोग-वियोग, दोनों ही अवस्थाएँ हैं और आत्मा हमेशा के लिए स्थिर ही है। स्थूल व सूक्ष्म अवस्थाएँ स्वभाव से ही जानी जा सकती हैं। आत्मा ज्ञान स्वरूप है। वह खुद के स्वाभाविक ज्ञान प्रकाश से बाहर की अवस्थाओं को देखता रहता है। अवस्था उत्पन्न होती है, टिकती है और विलय हो जाती है। यहाँ पर अवस्थाओं के टिकने का अर्थ ध्रुव नहीं है क्योंकि जब टिकी हुई होती हैं तब सूक्ष्म रूप से नाश होने की प्रक्रिया चलती ही रहती है। ध्रुव का मतलब तो यह है कि हमेशा के लिए उसी स्वरूप में रहे, गीता में ऐसा कहा गया है कि 'सृष्टि का सृजन, पालन और विसर्जन मैं कर रहा हूँ', इसका सूक्ष्म अर्थ यह है कि 'मैं' शब्द आत्मा के लिए है और उसके पर्याय उत्पन्न होते हैं और नष्ट हो जाते हैं जबकि आत्मा खुद ध्रुव रहता है। 60
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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