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________________ रहता है। पोतापन उत्पन्न होता है लेकिन उससे 'मैं' को कोई लेना-देना नहीं है, पोतापन को लेना-देना है। वास्तव में 'मैं' पोतापन नहीं करता है लेकिन जब 'मैं' का दूसरी जगह पर आरोपण होता है तो उस आरोपण करने वाले में पोतापन उत्पन्न हो जाता है। और ऐसा आरोपण करने वाला है अज्ञान। अज्ञान से 'मैं चंदूभाई हूँ' का आरोपण होता है, वही अहंकार है और 'मैं शुद्धात्मा हूँ' हो जाए तो अहंकार चला जाता है और फिर जागृति उत्पन्न होती है। ___ ज्ञान के बाद में तन्मयाकार कौन होता है? अहंकार (सूक्ष्मतर), और जो नहीं होने देता, वह है जागृति, जो अलग ही रखती है। मूल आत्मा तन्मयाकार होता ही नहीं है। ___'आप' तन्मयाकार हो जाते हो, तो उसमें 'आप' कौन हो? 'मैं' तो पहले से रहा हुआ है ही। जो 'मैं' पहले प्रतिष्ठित आत्मा के रूप में बरतता (रहता) था, वह 'मैं' ज्ञान के बाद में जागृति के रूप में बरतता है, वही जागृत आत्मा है। फिर वह तन्मयाकार नहीं होता। ज्ञान के बाद प्रतिष्ठित आत्मा ज्ञेय के रूप में, निश्चेतन चेतन के रूप में, डिस्चार्ज के रूप में रहता है और जागृति उसे जानती है। ज्ञान से पहले प्रतिष्ठित आत्मा ही ज्ञाता माना जाता था। जहाँ संपूर्ण जागृति बर्तती है वहाँ पर 'मैं' मूल आत्मा में एकाकार हो जाता है, परमात्मा बन जाता है। वर्ना तब तक अलग बरतता है। अंतरात्मा की तरह रहता है, अलग रहकर। पूरे शरीर में 'मैं' का स्थान कहाँ पर है ? सुई चुभोने पर 'मैं' अ... करता है न? जहाँ-जहाँ लगती है, वहाँ पर 'मैं' है। बड़ी बस के ड्राइवर का 'मैं' कहाँ पर है? पूरी बस में! 'मैं' पन का उतना अधिक विस्तार करता है। प्रकृति में आत्मा की जानपने की शक्ति उतरी है। उसे पावर चेतन कहते हैं। उसमें पावर किस तरह भरता है? विशेष भाव से 'मैं' उत्पन्न होता है। 'मैं कर रहा हूँ' माना कि पावर भर जाता है। 'मैं जानता हूँ' 44
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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