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________________ आप्तवाणी - १४ ( भाग - १ ) दादाश्री : एक ही प्रकार की चीज़ रहे तो बहुत बोरियत हो जाएगी। एक ही प्रकार की चीज़ को तू रखे रखता है क्या ? खुद भी वही रहेगा तो बोरियत हो जाएगी । ( वही की वही स्त्री हो तो बोरियत हो जाती है ?)। जो कुछ भी हो, यदि उसमें वही का वही रहे तो बोरियत होती है । यह किस आधार पर कहा गया है ? क्या वही का वही फिर से सुःख देता है ? इस दुनिया में हर एक चीज़ परिवर्तनशील स्वभाव वाली ही है। उसमें तू एक ही प्रकार का कैसे ढूंढेगा ? हमेशा स्थिर कैसे ढूँढेगा तू ? प्रश्नकर्ता : स्थिर को ढूँढने के लिए प्रश्न पूछा है । दादाश्री : नहीं, लेकिन जहाँ सभी चीजें परिवर्तनशील ही हैं, वहाँ २६६ पर... प्रश्नकर्ता : आत्मा तो स्थिर है न ? दादाश्री : नहीं! ऐसा तो कहीं होता होगा ? वह भी परिवर्तनशील है। वस्तु के तौर पर स्थिर है और अवस्था के तौर पर परिवर्तनशील है । 'तू' यदि अवस्था को देखेगा तो घबरा जाएगा जबकि वस्तु को देखेगा तो स्थिरता उत्पन्न होगी । वह खुद अवस्था वाला है और ये अवस्थाएँ विनाशी हैं । उनमें भटकता रहता है। जब मूल वस्तु को देखेगा न, तो फिर परमानेन्ट हो जाएगा। बुद्धि तो अवस्था को ही स्वरूप मनवाने का प्रयत्न करती है । तो उस क्षण यदि दादा को याद करके कहा जाए कि ‘मैं वीतराग हूँ', तो बुद्धि बहन बैठ जाएगी। अवस्था को 'मैं' माना कि पत्थर गिरेगा और उससे लहरें, स्पंदन पैदा होंगे। शुद्ध आत्मज्ञान होने के बाद फिर क्या बाकी रहा? तो कहते हैं, अवस्थाओं को अलग रखकर जानना है । ये अवस्थाएँ पर - द्रव्य की, I जड़
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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