SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी - १४ ( भाग - १ ) I भाप वाली हो जाती है । उसके बाद भाप से फिर बादल बनते हैं और बादल में से वापस पानी बनता है । ये सभी अवस्थाएँ निरंतर विनाशी हैं लेकिन वस्तुस्थिति में कोई कमी या बढ़ोतरी नहीं होती । अनंत जन्मों से आप भी हैं और मैं भी हूँ लेकिन बहुत से जन्मों में पुरुष बने होंगे, बहुत जन्मों में स्त्री बने। कई जन्मों में चार पैर मिले, कई जन्मों में बारह पैर मिले। इस तरह भटकते, भटकते, भटकते, भटकते ही रहे हैं । अवस्थाएँ सब बदलती ही रहती हैं निरंतर लेकिन आत्मा स्वरूप से आप वही हो । अब उस आत्मा को, खुद को रियलाइज़ कर लें तो फिर उसमें से मुक्त हो जाएँगे वर्ना मुक्त नहीं हो सकेंगे। २४० फर्क, पंच महाभूत और छः सनातन द्रव्यों में... प्रश्नकर्ता : हिन्दुओं में ऐसी बात कही गई है कि यह पूरा जगत् पाँच महाभूतों से बना हुआ है। भगवान महावीर ने छः तत्त्वों की बात की है। दोनों सही लगती हैं लेकिन दोनों में क्या अंतर है, वह पता नहीं चलता । दादाश्री : पाँच तत्त्वों से यह जो बना है, वह अधूरी समझ है । पाँच तत्त्व अर्थात् महावीर भगवान के छः द्रव्य हैं, उनमें से दो द्रव्य आ गए। प्रश्नकर्ता : तो ये पाँच महातत्त्व कौन से दो द्रव्यों से बने हैं ? दादाश्री : इन लोगों ने इस पुद्गल परमाणु द्रव्य के चार भाग कर दिए और पाँचवाँ, जो आकाश लिखा है, वह तो स्वतंत्र है । वह तो तत्त्व ही है, वास्तव में। इन लोगों को आँखों से सिर्फ एक ही प्रकार की पैकिंग दिखाई देती है, सिर्फ अनात्मा ही । पैकिंग में तो पाँच वस्तुएँ भरी हुई हैं, पाँच तत्त्वों से बनी है। पैकिंग कौन से तत्त्वों की बनी है ? पंच महाभूत । प्रश्नकर्ता : पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश दादाश्री : पंच महाभूत तो विवरण है। इसमें पृथ्वी, पानी, तेज
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy