SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२.२) गुण व पर्याय के संधि स्थल, दृश्य सहित २२९ जड़ के जड़-पर्याय होते हैं, पुद्गल के पुद्गल-पर्याय होते हैं और चेतन के चेतन-पर्याय होते हैं, सभी पर्याय वाले होते हैं। हमने' अनार का पेड़ देखा है। यह तो समझो कि ऐसी चीज़ है जो दृष्टि से देखी जा सकती है, लेकिन अनार का पेड़ किस तरह से उत्पन्न हुआ, उसका मूल द्रव्य क्या है ? किसमें से उत्पन्न हुआ? किस प्रकार से उत्पन्न हुआ? इन सब को यदि देखा जा सके तो वह भी आत्मा का गुण नहीं है। ज्ञान प्रकाश नामक कोई गुण नहीं है लेकिन आत्मा का पर्याय है, ज्ञान पर्याय। अतः (विभाविक) पर्याय के बिना बाहर नहीं देख सकता, उसके जो गुण है, वे द्रव्य को नहीं छोड़ते। ऐसी सहचारिता है। जो द्रव्य के साथ रहते हैं, वे गुण हैं। पर्याय परिणामी हैं। पर्याय विनाशी हैं। एक आम को देखा और देखने के बाद फिर दूसरे आम को देखा। एक का विनाश हुआ, एक का उत्पाद हुआ। कुछ समय तक ध्रुव भाग रहा और उसके बाद तीसरे आम को देखा।* अवस्था है आत्मा की और नकल करता है पुद्गल प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, ये जो सभी अवस्थाएँ हैं, वे तो चेतन और जड़, दोनों के इकट्ठे होने से हैं न? दादाश्री : नहीं! जब अवस्थाएँ निरंतर रहती हैं तभी चेतन कहलाता है न! अवस्थाएँ निरंतर रहेंगी ही। प्रश्नकर्ता : यदि चेतन और जड़ इकट्ठे न हों तो अवस्था नहीं बनेंगी न? दादाश्री : नहीं-नहीं! फिर भी बनेंगी। ऐसा नहीं है कि अवस्थाएँ जड़ से मिलने की वजह से बनती हैं, वह तो उसका स्वभाव है। ये जो अवस्थाएँ दिखाई देती हैं, वे पुद्गल की हैं। आपने जिन अवस्थाओं की बात की है, वे पुद्गल की हैं। वह अवस्था अलग है, 'उसकी' अवस्था आत्म अवस्था होती है और पुद्गल की यह पुद्गल अवस्था! 'आपकी' अवस्था आत्म अवस्था है, उसके बजाय 'आप' पुद्गल की अवस्था को खुद की अवस्था मानते हो। आत्मा की अवस्था बदलती रहती है। वह *आप्तवाणी-३, पेज नं.-५९ से ६७- आत्मा- द्रव्य-गुण-पर्याय के बारे में विशेष विवरण।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy