SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२४ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) शुद्ध हूँ और पर्याय से भी यानी कि ज्ञेयों को जानने में परिणामित अवस्था... तो उन ज्ञेयों यानी पर्यायों से भी हम संपूर्ण शुद्ध हैं, सर्वांग शुद्ध हैं ? दादाश्री : शुद्ध ही हैं, पर्यायों से। प्रश्नकर्ता : पर्यायों से भी शुद्ध हैं, ऐसा कहते हैं और पर्यायों को शुद्ध करना बाकी भी है। ये दोनों किस प्रकार से? दादाश्री : पर्याय शुद्ध कब तक हैं? उसके (विभाविक आत्मा, विभाविक 'मैं' के) शुद्ध होने तक (विभाविक) पर्याय रहते हैं। फिर विभाविक पर्याय रहते ही नहीं लेकिन स्वाभाविक पर्याय तो रहते ही हैं। प्रश्नकर्ता : तो क्या 'खुद' के शुद्ध होने तक (विभाविक) पर्याय रहते हैं? दादाश्री : हाँ! उसके बाद तो ज्ञान ही रहता है। प्रश्नकर्ता : और यदि पर्याय शुद्ध हो जाएँ तो 'खुद' ज्ञान स्वरूप हो जाएगा? दादाश्री : जब तक एक भी पर्याय बाकी रहता है तब तक केवलज्ञान नहीं हो सकता। आत्मा अर्थात् 'ज्ञान-दर्शन व पर्याय'। ज्ञान-दर्शन व पर्याय अर्थात् आत्मा। द्रव्य के रूप में वह आत्मा ही कहलाता है और दूसरा वह, जिसे सांसारिक आत्मा कहा है। किसे? क्योंकि मूल आत्मा में (विभाविक) पर्याय होते ही नहीं हैं न! सिर्फ स्वाभाविक पर्याय ही होते हैं। प्रश्नकर्ता : हाँ, दरअसल आत्मा में (विभाविक) पर्याय होते ही नहीं हैं। दादाश्री : जो अविनाशी है, उसमें विनाशी है ही नहीं। सिर्फ स्वाभाविक (पर्याय) होते हैं। प्रश्नकर्ता : अर्थात् इन सब ने जो बात की है, वह आत्मा के इन
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy