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________________ २१० आप्तवाणी-१४ (भाग-१) देता है, वही है अथवा कान से जो सुनाई देता है वह, जीभ से चख सकते हैं वह, वह सारी बुद्धि है। प्रश्नकर्ता : यह तो इन्द्रियों का हुआ लेकिन अंदर भी सब चलता रहता है न! बुद्धि देखती है कि ये पक्षपाती हैं, ऐसे हैं, वैसे हैं, वह सब बुद्धि ही देखती है न? दादाश्री : जो ऐसा सब देखती है, वह बुद्धि ही है। आत्मा का ज्ञान-दर्शन तो है देखना और जानना, वह अलग चीज़ है। जो द्रव्यों को देखता व जानता है, द्रव्य के गुणों को जानता है, उसके पर्यायों को जानता है, उन सब को देखता और जानता है, वह आत्मा है। या फिर जो मन के सभी पर्यायों को जानता है। बुद्धि तो मन के पर्यायों को कुछ हद तक ही जान सकती है जबकि आत्मा मन के सभी पर्यायों को जानता है। बुद्धि को जानता है, परिस्थितियों को जानता है, अहंकार के पर्यायों को जानता है, सभी कुछ जानता है। जहाँ पर बुद्धि नहीं पहुँच सकती वहाँ पर उसका (आत्मा का) शुरू होता है। प्रश्नकर्ता : और जो चंदूभाई को देखती है, क्या वह बुद्धि है? दादाश्री : उसे बुद्धि देखती है और बुद्धि को जो देखता है, वह आत्मा है। बुद्धि क्या कर रही है, मन क्या कर रहा है, अहंकार क्या कर रहा है, जो इन सभी को जानता है, वह आत्मा है। आत्मा से आगे परमात्मा पद है। जो शुद्धात्मा बन गया, वह परमात्मा की तरफ जाने लगेगा और जो परमात्मा बन गया उसे केवलज्ञान हो जाएगा। या फिर जिसे केवलज्ञान हुआ वह बन गया परमात्मा। पूर्ण हो गया, निर्वाण पद के लायक हो गया। अतः देखने-जानने का उपयोग रखना चाहिए, पूरे दिन। प्रश्नकर्ता : जो इस पुद्गल की सभी चीज़ों को देखता है और देखने की सभी जो क्रियाएँ हैं, वे बुद्धि क्रिया हैं या ज्ञान क्रिया हैं ? दादाश्री : यों तो वह प्रज्ञा के भाग में ही आता है न! अहंकार और बुद्धि की क्रिया से कुछ समझ में आता है वर्ना प्रज्ञा के बिना समझ में नहीं आ सकता।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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