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________________ (२.१) परिभाषा, द्रव्य-गुण-पर्याय की २०७ पर्याय अलग हैं। ये संगदोष पर्याय हैं। अनात्मा के संगदोष की वजह से तो ये पर्याय हैं। इस संग से अलग होने के बाद में वे पर्याय साफ, क्लियर रहेंगे। अब ऐसा कहते हैं कि किस आधार पर यह सब चल रहा है? तो नियति के आधार पर। यह प्रवाह की तरह बह रहा है और अनादि से यह प्रवाह बह रहा है। अब इसमें बुद्धि कैसे चलेगी? आत्माएँ अनंत हैं और पुद्गल अर्थात् परमाणु भी अनंत हैं और यों समसरण में हैं। यानी कि दोनों साथ में हुए इसलिए संगदोष लग गया है। उस संगदोष से यह उत्पन्न हुआ है, तब संग तो है। जब से हैं तब से संगदोष है। अतः इस इटर्नल की शरुआत नहीं है। प्रश्नकर्ता : आपने अभी-अभी कहा कि उत्पन्न हुआ है ? दादाश्री : शब्द तो बोलना पड़ता है आपको समझाने के लिए कि 'भाई, आपको जो दिखाई देता है, वह किस आधार पर है?' हम कहते हैं कि सूर्य सुबह उगता है। वहाँ पर कहते हैं, 'उगा' और यहाँ पर कहते हैं, 'अस्त हो गया', इज़ देट फैक्ट? प्रश्नकर्ता : नहीं, वैसा तो दिखाई देता है। दादाश्री : तेरी समझ से दिखाई देता है या नहीं? ऐसा ही है यह। हमें सबकुछ दिखाई देता है कि ऐसा कुछ है नहीं। वहाँ पर उसे यही दिखाई देता है कि सूर्य उगा और अस्त हो गया। यानी कि लोगों के लिए वह ठीक है, उसे जैसा दिखाई देता है वैसा ही कहता है। क्या सूर्य को वैसा ही दिखाई देता होगा? सूर्य को क्या दिखाई देता होगा? प्रश्नकर्ता : सूर्य की जगह पर जाकर देखा जाए तो वह उगा भी नहीं है और अस्त भी नहीं हुआ है। ऐसा जवाब आएगा न? दादाश्री : हं । उगा भी नहीं है और अस्त भी नहीं हुआ है। कई चीजें ऐसी हैं कि जो खुद की दृष्टि से बाहर की हैं, इस बुद्धि से बाहर की हैं।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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