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________________ २०० आप्तवाणी-१४ (भाग-१) प्रश्नकर्ता : अशुद्ध चित्त का आत्मा के पर्याय के साथ क्या संबंध दादाश्री : बुद्धि और चित्त, वे प्रतिष्ठित आत्मा ('मैं' - विभाविक आत्मा) के कहे जाते हैं, क्योंकि बुद्धि आशययुक्त है। ये जो ज्ञान व दर्शन हैं, वे गुणों से भरपूर हैं, लेकिन अवस्थाओं के तौर पर सीमित हैं। यह जो चित्त है, वह बुद्धि के पर्याय हैं। वे पर्याय अशुद्ध हो चुके हैं। चित्त अशुद्ध ज्ञान-दर्शन का पर्याय है, वे बुद्धि की अवस्थाएँ हैं, वे पर्याय हैं। जब बुद्धि की लिमिट खत्म होती है, तब वह बुद्धि का अनुसरण करता है। बुद्धि जो भी डिसिज़न देती है, वह व्यवस्थित के अनुसार ही देती है। जितना बुद्धि का प्रकाश होता है, उतने ही चित्त के पर्याय होते हैं। शुद्ध चित्त पर्याय रूपी है और शुद्धात्मा, द्रव्य-गुण रूपी है लेकिन अंत में तो सब एक ही चीज़ है। बदलते हैं सिर्फ पर्याय, न कि ज्ञान-दर्शन प्रश्नकर्ता : द्रव्य, गुण और पर्याय, इनमें से पर्याय आत्मा का गुण है या उसकी अवस्था है?* दादाश्री : यदि गुण होता तो वह गुणों में आता। पर्याय अर्थात् एक प्रकार की अवस्था और वह भी गुण की अवस्था। आत्मा की अवस्था नहीं है, गुण की अवस्था है। सूर्य में प्रकाश का गुण है न, इसलिए जब सूर्य आता है तो उजाला हो जाता है। ऐसा है न कि यह जो लाइट (इलेक्ट्रिक बल्ब) है, वह द्रव्य कहलाता है और जो प्रकाश देने की शक्ति है, वह गुण कहलाता है। ज्ञान व दर्शन, वे गुण कहलाते हैं और जब प्रकाश में इन सभी चीजों को देखता और जानता है, तब वे पर्याय कहलाते हैं। ये सभी चीजें जो दिखाई देती हैं, वे ज्ञेय व दृश्य कहलाती हैं। द्रव्य व गुण ज्ञेय के अनुसार नहीं होते। पर्याय ज्ञेय के अनुसार होते हैं। 'लाइट' (बल्ब) उसी जगह पर रहती है। *आप्तवाणी-३ पेज नं-५९ से ६७ आत्मा द्रव्य-गुण-पर्याय के बारे में विशेष विवरण
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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