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________________ कहा जाता लेकिन ज्ञानियों की भाषा में उसे विशेष ज्ञान कहा जाता है। अज्ञान भी प्रकाश है। पूर्ण नहीं, परंतु क्षयोपशम वाला। आत्मा के एक-एक प्रदेश पर जड़ परमाणु चिपके हुए हैं, जो आत्मा के मूल गुण पर आवरण लाते हैं। निगोद में यह आवरण सौ प्रतिशत है। जैसे-जैसे जीव का इवोल्यूशन होता है यानी कि आवरण हटते जाते हैं, वैसे-वैसे उसका ज्ञान व्यक्त होता जाता है। ९९, ९८, ९७... इस प्रकार जैसे-जैसे धीरे-धीरे बाहर आवरण कम होते जाते हैं, वैसे-वैसे एक प्रतिशत, दो प्रतिशत, तीन प्रतिशत, चार प्रतिशत ज्ञान स्थूल में प्रकट हो जाता है। जैसे कि एकेन्द्रिय जीव, दो इन्द्रिय जीव का डेवेलपमेन्ट होता जाता है, वैसे-वैसे... लेकिन अभी जब तक अज्ञान का आवरण है, तब तक उसे अज्ञान कहा गया है। अज्ञान और संयोगों का दबाव (जड़ तत्त्व का दबाव), इन दोनों के मिलने से आत्मा का ज्ञान-दर्शन नामक गुण विभाविक हो जाता है। दोनों में से पहले दर्शन विभाविक होता है। उससे 'मैं' उत्पन्न हो जाता है। (फर्स्ट लेवल का विभाव, विशेष भाव) उसके बाद जैसेजैसे 'मैं' की रोंग बिलीफ आगे बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे 'मैं चंदू हूँ, मैं कर रहा हूँ', ऐसा मानता जाता है। ___ वह सेकन्ड लेवल का विशेष भाव, जिसमें 'मैं' को 'मैं चंदूभाई हूँ' की रोंग बिलीफ हो जाती है, वह फिर जब गाढ़ हो जाती है तब उसे, ज्ञान में परिणामित हुई, ऐसा कहा जाता है। वह विभाविक ज्ञान कहलाता है। जिसे बुद्धि कहा गया है और वहाँ पर जड़ परमाणुओं में प्रकृति उत्पन्न हो जाती है। आत्मा को भ्रांति हो गई है, ऐसा लोकभाषा में कहना पड़ता है। लेकिन वास्तव में उसे भ्रांति नहीं होती है। वर्ना वह मूल रूप में नहीं आ पाता। वास्तव में तो भ्रांति किसे कहते हैं? अंदर दुःख होता है तब मन में ऐसा लगता है कि 'इतना सब जानने के बावजूद ऐसा क्यों? इसलिए कुछ तो अलग है, यह मेरा स्वरूप नहीं है।' इसे भ्रांति होना कहते हैं। 26
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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