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________________ १७४ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) प्रश्नकर्ता : यानी कि 'उसे' पता चलता है कि यह मेरा अस्तित्व नहीं है, इसलिए उसका मोक्ष हो जाता है। दादाश्री : यह सब गायब हो जाता है उसका। प्रश्नकर्ता : जो ऐसा मानता है, वह कौन है? दादाश्री : अहंकार है। और कौन? बुद्धि सहित। प्रश्नकर्ता : बुद्धि सहित? दादाश्री : अर्थात् वह अहंकार, हमेशा पूरे अंत:करण सहित ही होता है। अकेला नहीं होता। प्रश्नकर्ता : तो अंत:करण सहित जो अहंकार है, उसी को आत्मा जानने की इच्छा है न? दादाश्री : नहीं। आत्मा जानने की किसी को कोई इच्छा नहीं है। उन्हें आत्मा जानने की इच्छा क्यों हो? उन्हें क्या ज़रूरत है आत्मा की? प्रश्नकर्ता : 'मोक्ष में जाना है', ऐसा कहा है न। दादाश्री : उन्हें तो यह सुख चाहिए। हमारा सुख कहाँ पर खो गया? तो कहते हैं, इसमें तेरा सुख नहीं खोया है। यहाँ पर आ जाओ। यह अहंकार कहता है न कि, 'मैं दुःखी-दुःखी हो गया। प्रश्नकर्ता : तो फिर अहंकार तो वहाँ पर जाएगा नहीं। दादाश्री : नहीं! जाएगा नहीं। वह खत्म हो जाता है तो आ गया वह सब। वे जो मान्यताएँ थीं, रोंग बिलीफें थीं, वे खत्म हो जाती हैं। प्रश्नकर्ता : यह सुख-दुःख का भी भ्रम हो गया है। दादाश्री : यह सिर्फ भ्रम ही है। अन्य कुछ है भी नहीं। भ्रम है लेकिन फिर वह रिलेटिव सत्य है। भ्रमणा में बिल्कुल भी चिंता नहीं होती। यह तो रिलेटिव सत्य है। इल्यूज़न में तो हमें काफी कुछ घबराहट और ऐसा सब उल्टा दिखाई देता है और ऐसा सब होता है लेकिन चिंता नहीं
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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