SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१.१२) 'मैं' के सामने जागृति १६५ उल्टी जगह पर होता है और जब जागृति आ जाती है तब उसका उपयोग सही जगह पर होता है, जागृति से। 'हूँ' की वर्तना बदलती है ऐसे... प्रश्नकर्ता : तन्मयाकार कौन होता है? दादाश्री : अहंकार। जो उसमें तन्मयाकार नहीं होने देता, वह है जागति। वही अलग रखती है। मूल आत्मा तन्मयाकार नहीं होता। अजागृति से हम तन्मयाकार हो जाते हैं न! प्रश्नकर्ता : ज्ञान प्राप्ति के बाद यदि जागृति रहे तो प्रतिष्ठित आत्मा तन्मयाकार नहीं होगा? दादाश्री : उसके बाद जो भान रहता है, वह एक जागृति है और जब जागृति अपने स्वभाव में आ जाएगी तब वह तन्मयाकार नहीं होगा। यह तो जब तक पिछला फोर्स है तब तक हट जाती है। फोर्स कम हो जाएगा तो तन्मयाकार नहीं होगी। जो डिस्चार्ज है वह पूरा ही टंकी का पानी है, भरा हुआ माल है। प्रश्नकर्ता : आपने ऐसा कहा है 'जागृति हो गई है इसलिए आप तन्मयाकार नहीं होते', तो इसे किस प्रकार से समझें? दादाश्री : आप अर्थात् क्या है ? मूल आत्मा नहीं। अभी भी 'मैं' तो रहा हुआ है ही, पहले यह 'मैं' प्रतिष्ठित आत्मा के रूप में था, अब 'मैं' जागृति के रूप में है। वह 'मैं' तन्मयाकार नहीं होता। प्रश्नकर्ता : तो क्या इसका अर्थ यह हुआ कि जब हम तन्मयाकार नहीं होते हैं तो प्रतिष्ठित आत्मा भी तन्मयाकार नहीं होता? दादाश्री : नहीं! हम अर्थात् कौन? जो उस समय हाज़िर है, वह। जो उस समय अपनी बिलीफ में है। अभी पूर्णतः शुद्धात्मा नहीं हुए हो। मूल प्रतिष्ठित आत्मा छूट गया। अब, जागृत आत्मा का अर्थ है जागृति। जागृति जो कि परिणाम है, वह अभी वहाँ पर यों तन्मयाकार नहीं होती।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy