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________________ (१.१२) 'मैं' के सामने जागृति १६१ प्रश्नकर्ता : क्या महात्माओं में पोतापन है ? दादाश्री : पोतापन तो ज़बरदस्त है। जो भोला होता है न, उसमें कम होता है। प्रश्नकर्ता : उस 'मैं' के बारे में ज़रा और बताइए न! दादाश्री : 'मैं' तो एवरीव्हेर एडजस्टेबल है कि 'मैं तो जमाई हूँ' कहे तो वह जमाई भी बनता है। 'ससुर हूँ' कहे तो वैसा बन जाता है और 'मैं शुद्धात्मा हूँ' कहे तो शुद्धात्मा बन जाता है और 'मैं पुद्गल हूँ' कहे तो पुद्गल बन जाता है। 'मैं' तो एवरीव्हेर एडजस्टेबल है, कितनी अच्छी चीज़ है ! देखो न, 'मैं' अभी चंदूभाई था और दो घंटे बाद 'मैं' शुद्धात्मा बन गया। वही का वही 'मैं'। अभी तो नहलाया-धुलाया कुछ भी नहीं किया, वैसे का वैसा ही है। देखो, वह 'मैं' अपवित्र भी नहीं होता न! कसाई बना हुआ 'मैं', शुद्धात्मा बन जाता है। पहले वह कसाई था। यदि उसे पूछे कि तू कौन है ? तो वह कहता है कि 'मैं कसाई हूँ'। ज्ञान के बाद में शुद्धात्मा बन जाता है। नहलाना-धुलाना वगैरह कुछ भी नहीं करना पड़ता जबकि लोग तो रोज़-रोज़ नहाते हैं फिर भी कभी सुधरे नहीं। उस 'मैं' पर सोचने योग्य है ! कैसा है यह ! एवरीव्हेर एडजस्टेबल! 'मैं' में ओवरहॉलिंग करने जैसा कुछ भी नहीं है। उसमें एक भी स्पेयरपार्ट नहीं है। अनंत जन्मों की स्थितियों में वह कभी भी नहीं बदलता। पोतापन एवरीव्हेर एडजस्ट नहीं हो सकता। पोतापन, पोतापन के साथ ही एडजस्ट हो सकता है। अन्य किसी के साथ एडजस्ट नहीं हो सकता। अतः 'मैं' और 'पोतापन', दोनों बहुत अलग चीजें हैं। हम में पोतापन नहीं है। इस ज्ञान के बाद अब आपका पोतापन छूटने लगा है। प्रश्नकर्ता : दादा, अज्ञान दशा में 'वहाँ' पर धर्मभक्ति करते थे तब तो पोतापन को गुण मान लिया था न? तो फिर वह उसमें से छूटेगा ही कैसे?
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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