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________________ (१.१२) ‘मैं' के सामने जागृति प्रश्नकर्ता : अब इस ज्ञान या अज्ञान, इन दोनों की आदि क्या है ? १५९ दादाश्री : दोनों की आदि है विज्ञान । मूल आत्मा, विज्ञानमय आत्मा। उसमें से ये ज्ञान और अज्ञान, धूप और छाया, दोनों शुरू हो गए। ही है। अहंकार की आदि और वृद्धि प्रश्नकर्ता : हम ऐसा मानते थे कि अहम् का मतलब अहंकार दादाश्री : नहीं, अहंकार और अहम् में तो बहुत फर्क है । प्रश्नकर्ता : इनमें भी फर्क है ? इनमें क्या फर्क है ? वह ज़रा सूक्ष्मता से समझाइए न ! दादाश्री : 'मैं 'पन, वह अहम् है और 'मैं 'पन का प्रस्ताव करना (मैं चंदूभाई हूँ), वह अहंकार है । 'मैं प्रेसिडेन्ट हूँ', वह अहंकार नहीं कहलाता। लोग तो ऐसा कहते हैं कि 'अहंकारी पुरुष है', लेकिन वास्तव में वह मानी पुरुष कहलाता है । अहंकार तो, जहाँ पर संसार की कोई चीज़ स्पर्श नहीं करती और जहाँ पर खुद नहीं है, वहाँ पर ऐसा मानता है कि ‘मैं हूँ', वह सब अहंकार में आता है । वस्तु में कुछ भी नहीं है। लेकिन जैसे ही दूसरी वस्तु को छूता है तो उससे मान होता है ! 'मैं प्रेसिडेन्ट हूँ', ऐसा सब दिखाए तो हम समझ जाएँगे न कि यह व्यक्ति मानी है। प्रश्नकर्ता: प्रस्ताव में क्या आता है ? दादाश्री : ज़रूरत से ज़्यादा 'मैं 'पन बोलना । वह 'मैं' तो है ही, अहम् तो है ही मान्यता में लेकिन उसका प्रस्ताव करना कि 'यह सही है और यह गलत है, इस तरह से शोर मचाने जाता है, वह अहंकार कहलाता है। लेकिन उसमें दूसरी चीज़ नहीं है, मालिकीपन नहीं आता किसी भी चीज़ पर । मालिकीपन आ जाए तो 'मान' आता है।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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