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________________ १५० आप्तवाणी-१४ (भाग-१) अर्थात् सिद्ध क्षेत्र में जाने के बाद में स्व-स्वरूप खत्म नहीं होता। सिद्ध क्षेत्र में जाने के लिए, ज्ञानी पुरुष ने जो ज्ञान दिया हो, प्रकाश दिया हो और आत्मा अलग कर दिया हो, उसके बाद उनकी आज्ञा का पालन करो तो अलग का अलग ही रहेगा। उससे सभी कर्म क्षय हो जाएँगे और फिर एक-दो जन्मों में मोक्ष में चला जाएगा। उसके बाद वहाँ पर विशेष भाव नहीं होगा। अलोक में सिर्फ आकाश ही है और सिद्ध क्षेत्र में अन्य कोई ज्ञेय नहीं हैं, तो फिर ज्ञाता के लिए अन्य कुछ रहा ही नहीं न! प्रश्नकर्ता : वहाँ पर ज्ञेय नहीं है तो फिर आप जो कहते हैं न कि सिद्ध क्षेत्र में जाने के बाद में वह सिर्फ देखता और जानता है। तो क्या वह इस लोक का देखता व जानता है? दादाश्री : पूरे ही लोक का। जब दो तत्त्व नज़दीक होते हैं तब उसे विभाव हो जाता है। सिद्ध क्षेत्र में उसके नज़दीक कोई है ही नहीं न! सिद्ध लोक में अन्य कोई वस्तु है ही नहीं न, यानी कि उसे सामीप्य भाव नहीं है। कुछ भी नहीं है। यहाँ पर तो यह लोक है। लोक में सब वस्तुओं का सामीप्य भाव है। इसलिए दूसरी वस्तु के सामीप्य भाव से विशेष भाव उत्पन्न हो जाता है। प्रश्नकर्ता : शुद्धात्मा जब सिद्ध क्षेत्र में शुद्ध दशा में जाता है तो फिर वे परमाणु कहाँ रहते हैं ? दादाश्री : कौन से? प्रश्नकर्ता : अचेतन वाले। दादाश्री : वह तो, विलय हो जाने के बाद में ही जाता है न! और ज़रा से जो बच जाते हैं, वे कुछ देर तक ही चौदहवें गुण स्थानक में रहते हैं, फिर जैसे ही वे चले जाते हैं तब वह खुद चला जाता है ऊपर सिद्ध क्षेत्र में। उसके बाद धर्मास्तिकाय उसे ऊपर छोड़ आता है।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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