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________________ आप्तवाणी - १४ ( भाग - १ ) प्रश्नकर्ता : लेकिन यह तो उत्तम वाणी है, यथायोग्य वाणी है I I दादाश्री : उत्तम वाणी है, फिर भी यह इसमें से ही बनी है । यह कौन सी भाषा है ? यह रिलेटिव भाषा नहीं है, रियल रिलेटिव वाली है । १४८ प्रश्नकर्ता: दादा, हमारे लिए तो यह नया ही निकला, हं! ऐसी तो ये कितनी ही बातें जब दादा के पास अकेले बैठे हों तब सुनी जा सकती हैं। दादाश्री : वह तो वैसा टाइम आने पर ही निकलती हैं। वर्ना निकलती नहीं हैं न ! ऐसा संयोग मिलना चाहिए, टाइम आना चाहिए, उस तरह से क्षेत्र बदलते रहना चाहिए । एक जगह पर बैठे-बैठे कैसे निकलेंगे? क्षेत्र बदलता रहे (अलग-अलग जगह पर सत्संग हो) तब ऐसा निकलता है ! प्रश्नकर्ता : तो क्या ऐसा है कि रियल रिलेटिव की भाषा व्यतिरेक गुणों में से है ? दादाश्री : यह रियल रिलेटिव है, इसलिए इसका प्रमाण दूसरी जगह पर नहीं मिलेगा। यह प्रमाण स्वतंत्र है। यह भाषा, यह अर्थ, ये सभी स्वतंत्र हैं और ये ऐसे हैं कि वहाँ पर लोगों की बुद्धि स्थिर हो जाती है, ऐसे हैं कि बुद्धि शांत हो जाती है । ये जवाब रियल रिलेटिव हैं जबकि रिलेटिव में तो बुद्धि वह कूदती है । यह सब समझने जैसा है। प्रश्नकर्ता : इसका (वाणी का) उद्भव रियल रिलेटिव में से हुआ है अर्थात्... दादाश्री : है रिलेटिव, लेकिन कौन सा रिलेटिव ? तो वह है रियल रिलेटिव । वह ( सांसारिक) रिलेटिव रिलेटिव है । पहला, रियल रिलेटिव, दूसरा, रिलेटिव और तीसरा, रिलेटिव रिलेटिव । ये तीन कनेक्शन हैं । यह बात इनमें से पहले कनेक्शन की है । इंसान पहले कनेक्शन में नहीं पहुँच सकता। यदि वह पहुँच सके तो उसकी वाणी टेपरिकॉर्डर बन जाएगी।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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