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________________ १४४ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) दादाश्री : पहले अहम् है। जब से 'उसे' ऐसी प्रतीति होती है कि 'अहम्' एक गलत ज्ञान है, तभी से अहम् टूटने लगता है। तभी से मूल आत्मा की तरफ जाने लगता है, स्वभाव की तरफ जाने लगता है। इस विशेष भाव की बजाय स्वभाव की तरफ जाने लगता है। प्रश्नकर्ता : दोनों आमने-सामने ही हैं, काउन्टर वेट की तरह? जैसे-जैसे इस तरफ यह प्रतीति बढ़ती जाती है कि अहम् भाव गलत है, क्या वैसे-वैसे वह विशेष भाव भी मंद होता जाता है? दादाश्री : अहम् भाव जितना विलय होता जाएगा, उतना ही विशेष भाव विलय होता जाएगा। प्रश्नकर्ता : और यदि अहम् भाव संपूर्णतः खत्म हो जाए तो? दादाश्री : विशेष भाव खत्म हो जाएगा। स्वभाव रहेगा। दोनों के जाति स्वभाव रहेंगे। पुद्गल, पुद्गल के स्वभाव में और आत्मा, आत्मा के स्वभाव में। दोनों जैसे थे, वापस वैसे ही हो जाएँगे। प्रश्नकर्ता : तो फिर ये जो मन-वचन-काया रह जाते हैं, वे? मन के विचार रह जाते हैं, वाणी रह जाती है तो इस प्रवर्तन और विशेष भाव के बीच कोई संबंध है क्या? दादाश्री : उनका कोई लेना-देना नहीं हैं। अहंकार ही विशेष भाव है। अहंकार अर्थात् अहम् भाव, वही विशेष भाव है। जहाँ पर खुद नहीं है, वहाँ पर अहम् भाव करता है कि 'यह सब मैं हूँ'। वही विशेष भाव है। जब 'उसे' यह समझ में आता है कि 'यह अहम् भाव गलत चीज़ है और दूसरी वस्तु सही है', जब ऐसी प्रतीति बैठती है, तब मूल विशेष परिणाम खत्म हो जाता है। फिर उसका अहम् भाव विलय होने लगता है। तभी से विशेष भाव (पर-परिणाम) विलय होने लगता है। अहम् भाव के खत्म होते ही विशेष भाव खत्म हो जाता है और स्वभाव भाव उत्पन्न हो जाता है। तब तक यह क्रिया चलती रहती है, अहम् भाव कम होता जाता है, स्वभाव भाव बढ़ता जाता है। अहम् भाव कम होता जाता है, स्वभाव भाव बढ़ता जाता है। जब तक दोनों पूर्णता प्राप्त नहीं
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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