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________________ १३४ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) प्रश्नकर्ता : अतः वह संयोग आ मिला, तो शुरुआत हो गई? दादाश्री : हाँ, और उसके बाद पर-परिणाम कहलाता है। प्रश्नकर्ता : भुगतना, वह पर-परिणाम है ? दादाश्री : हर प्रकार का भुगतना। दुःख भुगतना, सुख भोगना वह सारा ही। यह संसार मात्र पर-परिणाम है। इसीलिए हम कहते हैं न कि आपके हाथ में कोई सत्ता नहीं है। इसीलिए हम इन लोगों से कहते हैं कि 'भाई, व्यवस्थित कर रहा है, अब तू नहीं करता। पहले भी नहीं कर रहा था, लेकिन उस समय तुझे भान नहीं रहता था'। रह ही नहीं सकता न! लेकिन (ज्ञान लेने के बाद में) अब अभी यह बहुत ही अच्छी जागृति हो गई है इसलिए अब भान रहता है और फिर जैसे-जैसे दो-चार दिनों तक आज्ञा में रहेगा, वैसे-वैसे व्यवस्थित पर विश्वास होता जाएगा। फिर उसका वह विश्वास दिनोंदिन बढ़ता जाएगा, मल्टिप्लिकेशन होता जाएगा। जबकि उसमें (क्रमिक में) तो आज कहा और वापस कल भूल जाता है। उसे मूर्छित कहते हैं। अब भूलेंगे नहीं न! कितना सुंदर विज्ञान है! ज्ञानी की गर्जना, जागृत करे स्वभाव को प्रश्नकर्ता : शुद्धात्मा जैसी वस्तु है, इस चीज़ का आभास किसे होता है ? प्रतिष्ठित आत्मा को? दादाश्री : सिंह जब दहाड़ता है तो सिंह का बच्चा, जो बकरियों के साथ घूम रहा था, वह बच्चा तुरंत ही अपने स्वभाव में आ जाता है और वह भी गर्जना करने लगता है। उसमें गुण है न! उसी प्रकार से जब ज्ञानी पुरुष ज्ञान देते हैं तो उस समय यह सब हाज़िर हो जाता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन क्या वह विशेष परिणाम चला जाता है? दादाश्री : बंद हो जाता है पूरा, फ्रेक्चर हो जाता है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् क्या ऐसा नहीं है कि जो विशेष परिणाम उत्पन्न हुए, उनके माध्यम से आप शुद्ध को जानते हो?
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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